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गीतिका/सतविन्द्र कुमार राणा

आधार छन्द -- वाचिक भुजंगप्रयात
मापनी - 122 122 122 122
समान्त-- आ
पदान्त -- है
गीतिका
-------------------------------------------

बिना कर्म के कब किसे कुछ मिला है
करे कर्म जो साथ उसके खुदा है।

लिए माल को आज चिल्ला रहा जो
गरीबी है' क्या वो नहीं जानता है।

सदा श्रम से' सींचा है' जिसने जमीं को
उसी से ही' तो अन्न सबको मिला है।

नहीं मिलता' उसको जो है चाहता वो
बहुत कुछ मगर उसने सब को दिया है।

सही कर्म हो सबके कुछ इस तरह से
कि जिनसे सभी का ही तो फायदा है।

यूँ राणा समझ बनती जाए सभी की
सही जीने का जो हुआ कायदा है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 1, 2017 at 12:04pm
आदरणीय समर कबीर जी सादर नमन!इबी ए तनावुर के बारे में जो अंदाजा आदरणीय गोपाल सर के संकेत से लगा पाया था वह,ससटीक नहीं था।आपके मार्गदर्शन से इस ऐब को ठीक से समझ पाया।आपके इस मार्गदर्शन के लिए तहे दिल शुक्रिया!
Comment by Samar kabeer on December 29, 2016 at 2:44pm
'के क़ब से सींचा,'उसी से','सबके कुछ',और 'जिनसे सभी'इन शब्दों में ऐब-ए-तनाफ़ुर नहीं है,'के कब'में 'क'में ए की मात्रा लगी है,इसी तरह दूसरे शब्दों में भी मात्रा लगी है इसलिए ये तनाफ़ुर का दोष नहीं माना जायेगा,मिसाल के तौर पर 'राह हमारी'यानी पहले शब्द का आख़री अक्षर और उसके बाद वाले शब्द का पहला अक्षर समान होगा तब ये दोष होगा,अन्यथा नहीं ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 29, 2016 at 8:12am
आदरणीय गोपाल सर,ऐब ए त्नाफुर के बारे में पहले नहीं जानता था।आपने ज्ञान कराया उसके लिए आभारी हूँ।सादर वन्दन
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 4, 2016 at 11:14pm
आदरणीय डॉ गोपाल सर मैंने भुजंग प्रयात मीटर पर गीतिका लिखने का ही प्रयास किया है।यह उर्दू गजल की ही तरह है।पर इसमें भी अरूज़ के ही नियम लगते हैं क्या,इसमें मुझे संशय है।मैं इस विषय में मार्गदर्शन का तलबगार हूँ!सादर नमन संग आभार!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 4, 2016 at 11:11pm
आदरणीय विजय निकोरे जी,सादर हारदिक आभार,सादर नमन!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 4, 2016 at 11:10pm
आदरणीय लक्ष्मण लड़ीवाला सर आभार!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2016 at 12:46pm

अ०  सतविंदर जी , गीतिका लिखकर आपने कन्फ्यूज कर दिया .  भुजंगप्रयात के मीटर पर बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन    122 122 122 122 में आपने गजल लिखी है . प्रयास बढ़िया  है .

  के कब , से सींचा , उसी से , सबके कुछ  और  जिनसे सभी' में ऐब -ए -तनाफुर है .

Comment by vijay nikore on December 2, 2016 at 3:37pm

 सुन्दर रचना के लिए बधाई

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 1, 2016 at 4:21pm

सुंदर प्रस्तुति 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 1, 2016 at 4:16pm
आदरणीय समर कबीर जी सादर नमन,प्रयास की पसन्दगी और स्नेहिल प्रोत्साहन के लिए सादर आभार!

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