For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत(रोला छ्न्द)/सतविन्द्र कुमार राणा

गीत (रोला छ्न्द)
-----
सबपर उसका नेह,प्रकृति प्यारी है माता
खिलता हरसिंगार,रात में सुन ले भ्राता।

पँखुड़ी निर्मल श्वेत,मोह सबका मन लेती
सुंदरता है नेक,नयन को यह सुख देती
केसरिया है दंड,रंग जिसका चमकीला
हुआ मुग्ध मन देख,प्रकृति की ऐसी लीला
पुलकित होकर आज ,हृदय इसके के गुण गाता
खिलता हरसिंगार रात में सुन ले भ्राता।

देखो ज्यों ही तात, प्रात की बेला आए
अवनी पर तब पुष्प,सभी जाते छितराए
सुन्दर हरसिंगार,उठालो इनको चुनकर
बनते लेप अनेक,बड़े ही इनसे गुनकर
होता उनसे लेप,रूप को जो निखराता
खिलता हरसिंगार, रात में सुन ले भ्राता।

औषध का भी काम,करे यह पुष्प अनोखा
ज्वर को करता ठीक,नहीं देता यह धोखा
ठंडा रहे दिमाग,शक्ति अच्छी मिल जाती
गर्मी हो तो ठंड,हमें इससे मिल पाती
इसका सेवन ठीक,रोग कितने कर जाता
खिलता हरसिंगार,रात में सुन ले भ्राता।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 770

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 15, 2016 at 5:00pm
श्रद्धेय सौरभ पांडेय जी सादर नमन!प्रयास पर उपस्थित होकर प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल आभार।नवगीत विधा को सही से समझने के लिए अब जिज्ञासा बढ़ गई है।अब इस विधा की सभी बारीकियों को समझने की चेष्टा होगी।आपके इस मार्गदर्शन के लिए भी अतिशय आभार।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 15, 2016 at 4:57pm
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी,प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार भाई जी!
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 15, 2016 at 4:56pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी छंदों को पसन्द कर स्नेहिल प्रोत्साहत देने के लिए दिल से आभार।यह स्नेह यूँ ही बना रहे।सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 6, 2016 at 8:13am

इस प्रस्तुति को नवगीत की संज्ञा न दें, आदरणीय. प्रस्तुति साहित्यिक गेय रचना की श्रेणी की ही है. इसे साहित्यिक गीत कह सकते हैं. नवगीत अपने कथ्य और इंगितों के कारण एक विशिष्ट विधा है.

आपकी प्रस्तुति अवश्य पठनीय हुई है. छन्द के विधान पर आपकी आनुशासनिक पकड़ और प्रकृति-पुष्प हरसिंगार का सुन्दर शाब्दिक वर्णन बरबस ध्यान खींचते हैं और आपके साहित्यिक प्रयासों पर पाठकों से भूरि-भूरि प्रशंसा बटोर लेने का माद्दा रखते हैं. 

आपकी इस रचना केलिए हृदयतल से बधाई.

Comment by vijay nikore on December 6, 2016 at 7:34am

छ्न्द अच्छा है। बधाई।

Comment by नाथ सोनांचली on December 6, 2016 at 3:49am
आद0 भाई सतविन्द्र जी सादर अभिवादन। रोला छंद की शानदार प्रस्त्तुती के लिए कोटिश बधाई। बेहतरीन रोला छंद बना है मित्र
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2016 at 3:15pm

छंद बंधन एतु बधाई ,, आदरनीय 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 4, 2016 at 11:08pm
आदरणीय गिरिराज जी सादर नमन!अनुमोदन कर स्नेहिल प्रोत्साहन के लिए आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 4, 2016 at 9:39pm

आदरनीय सतविन्द्र भाई , हरशृंगार पर बहुत जानदार रोला गीत रचा अहि आपने , हार्दिक बधाई आपको ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service