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ग़ज़ल - अश्क़ आए तो निगाहों को सज़ा क्या दोगे

2122 1122 1122 22


अश्क आए तो निगाहों को सजा क्या दोगे ।
है पता खूब वफाओं को सिला क्या दोगे।।

खत जो आया था मुहब्बत की निशानी लेकर ।
लोग पूछें तो जमाने को बता क्या दोगे ।

सुन लिया मैंने तेरे प्यार के किस्से सारे ।
टूट जाए जो मेरा दिल तो खता क्या दोगे ।।

मेरी किस्मत ने मुझे जब भी पुकारा होगा ।
मुझको मालूम मेरे घर का पता क्या दोगे ।।

आशियाँ जब भी उजाड़ोगे तो मुश्किल होगी ।
तेरी हस्ती ही नही मुझको हटा क्या दोगे ।।

सो गया रात अधूरी सी कहानी लिखकर ।
चन्द मिसरों के लिए और जफ़ा क्या दोगे ।।

पाक कहते हैं उसे लोग बड़ी है चर्चा ।
साफ़ दामन है नया दाग़ लगा क्या दोगे ।।

लिख रही नाम तेरा रेत पे कब से पगली ।
उसकी आदत है वो जज्बात मिटा क्या दोगे ।।

बाद मुद्दत के हमें इश्क में जीना आया ।
दर्द बढ़ने के सिवा और दुआ क्या दोगे ।।

ऐ मुसाफ़िर तू हवाओं से कहाँ है वाक़िफ़ ।
इन चिरागों को हकीकत में बुझा क्या दोगे ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
अप्रकाशित और मौलिक

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Comment by Naveen Mani Tripathi on December 2, 2016 at 8:24pm
तहे दिल से आभार आ0 कबीर सर ।
Comment by Samar kabeer on December 2, 2016 at 3:23pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
ग़ज़ल आपकी कुछ और समय चाहती है,कुछ अशआर में आपके ऊला मिसरे सानी से रब्त पैदा नहीं कर पा रहे हैं,कारण ये कि आपकी रदीफ़ बहुवचन है और ऊला मिसरे में एक वचन की बात है,कुछ सुझाव हैं,देखियेगा :-
मतले के सानी मिसरे में 'वफाओं को' की जगह "वफ़ाओं का"कर लीजिये ।
तीसरे शैर का ऊला मिसरा यूँ करें:-
"सुन लिये आपके सब प्यार के क़िस्से मैंने"
चौथे शैर का ऊला मिसरा यूँ करें:-
"मेरी तक़दीर मुझे जब भी पुकारेगी,सुनो"पांचवें शैर का सानी मिसरा यूँ करें:-
"आपकी हस्ती नहीं,मुझको हटा क्या दोगे"आठवें शैर का ऊला मिसरा यूँ करें :-
"रेत पे नाम जो लिखती है तुम्हारा पगली"
आख़री शैर का ऊला मिसरा यूँ कर लें:-
"रौशनी जिनकी मुसाफ़िर को पता बतलाये"
बाक़ी शुभ शुभ
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 2, 2016 at 2:28pm
भाई सुरेन्द्र सिंह जी कृपया बह्र में जहाँ भी दोष हो उसे स्पष्ट करने का कष्ट करें जिससे ग़ज़ल में सुधार किया जा सके ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 2, 2016 at 2:25pm
आदरणीया अग्रवाल जी किस जगह बह्र में दोष है कृपया स्पष्ट करने का कष्ट करें जिससे सुधार कर सकूं ।
Comment by नाथ सोनांचली on December 2, 2016 at 2:13pm
आद0 नविन मनी त्रिपाठी जी कथ्य तो ठीक है पर शायद गजल बह्र के मुताबिक नहीं है। विद्द्वत जन इसे विस्तार से बताएँगे पर मेरे समझ से गजल बेबह्र हो गयी है। आपके प्रयास के लिए शुभकामना सहित बधाई निवेदित है।
Comment by Nidhi Agrawal on December 2, 2016 at 10:41am

बहुत उम्दा ख़याल है आदरणीय नविन जी .. मुझे रचना बे-बह्र लगी. सुधि जन बताएँगे मेरी सोच सही है या नहीं. कहीं कहीं व्याकरण की भी गलती लगती है ध्यान दीजियेगा 

 

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