For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुमको गीतों में ढाला तो ये कागा भी कुहक उठा- पंकज द्वारा गीत

तेरा नाम लिखा जो प्रियतम,पन्ना पन्ना महक उठा।
तुझको गीतों में ढाला तो, ये कागा भी कुहक उठा।।

मेरे शब्दों में खालीपन, एक उदासी छाई थी।
मुर्दों से बिछते कागज़ पर, मरघट सी तन्हाई थी।।

तेरा रूप उकेरा जब तो, कोहेनूर सा दमक उठा।
तुझको गीतों में ढाला तो, ये कागा भी कुहक उठा।।1।।

मैं तो ठहरा एक बावरा, इस उपवन उस उपवन भटका।
ढूँढा तुझको यहाँ वहाँ, पर माया वाले जाल में अटका।।

तेरा रूप सुमन जो महका, मन का पंछी चहक उठा।
तुझको गीतों में ढाला तो, ये कागा भी कुहक उठा।।2।।

इच्छाओं के जाल में जकड़ा, तड़पा ये मन खूब प्रिये।
जब भी उड़ना चाहा तब तब कसा ये बन्धन खूब प्रिये।।

मन ये तुझको सौंप दिया तो, हर इक धागा दहक उठा।
तुझको गीतों में ढाला तो, ये कागा भी कुहक उठा।।3।।


मौलिक अप्रकाशित

Views: 932

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on December 4, 2016 at 5:09pm
आदरणीय राजेश दीदी सादर प्रणाम, रचना को आशीष प्रदान के लिए हार्दिक आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on December 4, 2016 at 5:07pm
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम, आपके सुझाव बहुत उत्तम हैं। मूल में तुझको ही था, लेकिन मैंने यहाँ पोस्ट करते समय बदल दिया।
शेष सुधारता हूँ अभी, बहुत या मजबूत का तुकांत इस रचना के अनुरूप अभी सूझ नहीं रहा है।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on December 4, 2016 at 5:00pm
नमन आदरणीय पंकजपंकज जी समर कबीर जी द्वारा सुझाये बिंदुओं पर ध्यान देने की जरूरत है ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 3, 2016 at 5:38pm

बहुत प्यारा मन भावन गीत लिखा है आपने कागा के लिए अतिश्योक्ति का सहारा लिया है बहुत खूब तुकांतता के लिए बहुत की जगह प्रभूत भी कर सकते हैं बहुत बहुत बधाई आपको इस सुंदर गीत के लिए आद० पंकज कुमार जी .|

Comment by Samar kabeer on December 3, 2016 at 2:34pm
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,अच्छा गीत रचा आपने,बधाई स्वीकार करें ।
पहली यानी मरकज़ी दूसरी पंक्ति में'तुमको गीतों में'को "तुझको गीतों में" कर लें,क्योंकि पहली पंक्ति में 'तेरा' शब्द आया है । दूसरी बात ये कि कागा कुहकता नहीं कोयल कुहकती है ।
तीसरी और चौथी पंक्ति में तुकान्तता सही नहीं,'छाई' और 'छाइँ'
इसी तरह ग्यारहवीं और बारहवीं पंक्ति में तुकान्तता सही नहीं 'बहुत'और "मज़बूत" देखियेगा ।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on December 3, 2016 at 11:17am
आदरणीय रामबली सर गीत की आशीष देने के लिए हार्दिक आभार
Comment by रामबली गुप्ता on December 3, 2016 at 6:46am
वाह वाह बहुत ही सुंदर गीत हुआ है भाई पंकज जी दिल से बधाई लीजिये।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service