For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ मेरे आकाश !

पिता थे तुम

असीम अपरिमाप

सितारों की पहुँच से भी दूर

और मैं पर्वत की भाँति बौना

अपने उठान का अभिमान लिए

तब नहीं जानता था

यह फर्क

जब तुम मेरे पास थे

अनंत विस्तार लिए

भले ही

आज बन जाऊं मैं ऊंचा

चोमोलुंगमा

यानि कि सागरमाथा

दुनियां का सर्वोच्च हिमशिखर

एवरेस्ट ---

 

ओ मेरे आकाश !

 सदा ही रहोगे तुम

अनंत ऊँचाइयों पर

ऊंचे और उन्नत

कई-कई एवरेस्ट

शिखरों से ऊपर

और तना रहेगा तुम्हारा

श्यामल आच्छादन

ठीक सबके सिर पर

किसी अज्ञात

आशीर्वाद के प्रति उठे

एक प्रशस्त हाथ की तरह

 

ओ मेरे आकाश !

 क्यों हो मेरी पहुँच से  

तुम इतनी दूर ?

क्यों नहीं पहुँचते वहां तक

अब मेरे हाथ ?

जो कभी थामते थे

तुम्हारी उंगली

क्यों झिटक दिया तुमने मुझे

मेरी उन बौनी बांहों को ?

क्यों हो गए तुम

सिर्फ एक झटके से

मायावी अंत से

सत्वर अनंत ?

 

ओ मेरे आकाश !

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 493

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 6, 2016 at 5:45pm

आ० वामनकर जी , आपका स्नेह पाकर आश्वस्त हूँ सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 6, 2016 at 5:43pm

आ० विजय निकोर जी , आपकी भावपूर्ण टिप्पणी से अभिभूत हूँ . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 6, 2016 at 5:42pm

-आ० मिर्जा हफीज बेग साहिब , बहुत बहुत शुक्रिया .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 6, 2016 at 5:40pm

आ० सुनील प्रसाद जी , अभिभूत हुआ .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 6, 2016 at 5:39pm

आदरने समर कबीर साहिब , आपका शत शत आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 6, 2016 at 3:07pm

आदरणीय गोपाल सर, दिल को छूती प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई सादर 

Comment by vijay nikore on December 6, 2016 at 7:54am

पिता का स्थान मेरे जीवन में कितना महान था, यह आपकी हृदयस्पर्शी रचना मेरी पलकों को भिगो कर याद दिला गई। ३६ वर्ष हुए जब मैंने उन पर घी और सन्दल की आहुति दी थी, और मुझको लगा कि मैं केवल वहाँ तक ही उनको अपने पास रख सकता था । आपने यह क्या कविता लिखी सारा दृश्य वापस लौट आया। आपको किन शब्दों से बधाई दूँ, आदरणीय भाई गोपाल नारायन जी ! बहुत ही सुन्दर रचना है।

Comment by Mirza Hafiz Baig on December 5, 2016 at 10:15pm

आदरणीय डॉ, गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, धन्यवाद । दिल को छू लिया । पिता की कमी पता नही किस उम्र तक खलती रहती है ।

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on December 5, 2016 at 10:13pm
सुंदर भावपूर्ण सृजन बधाई है आपको।
Comment by Samar kabeer on December 5, 2016 at 8:20pm
जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,जब कोई हमसे दूर चला जाता है तब हमें अहसास होता है कि हमने क्या खो दिया है,और फिर पिता का साया तो वाक़ई आकाश की तरह ही होता है,बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service