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रेशम से रिश्ते ...

रेशम से रिश्ते ....

न हवा
न आंधी
धूप का कहर
तमतमाई वसुधा
शज़र के शीर्ष से
गिरा
बे-दम सा
एक
ज़र्द पत्ता

इतना भी
क्या अफ़सोस
बोली
नयी कोपल
दर्द पे
शज़र के

एक हल्की सी ज़ुब्मिश
शज़र बोला
बाद गुज़रने के
इतनी लंबी उम्र
अब
रिश्तों की
समझ आयी है


तू
अभी नयी है
तू
मुझे भी कहाँ जान पायी है

छोड़ के देख
मेरी उंगली को
तुझे दर्द की
समझ आ जाएगी
कोई साथ न देगा
तब
इस रेशम से रिश्ते को
पहचान जाएगी

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

आवाज़ आई

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 14, 2016 at 8:13pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति के भावों सहमति देती आपकी स्वर्णिम प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on December 14, 2016 at 5:03pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,रेशम से नाज़ुक रिश्तों को अच्छे शब्द दिये हैं आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बड़सी स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on December 14, 2016 at 1:48pm

आदरणीय  Mahendra Kumar     जी प्रस्तुति को अपना आत्मीय प्रशंसा से शोभित कर उसका मान बढाने का हार्दिक आभार। 

Comment by Mahendra Kumar on December 14, 2016 at 9:54am
बहुत बढ़िया कविता है आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत-बहुत बधाई। सादर।

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