" आज कड़ाके की ठण्ड है।" कहते हुए उसने दोनों हाथों को आपस में रगड़ कर अपने अंदर गर्मी का अहसास जगाया। बदन पर पहनी एकमात्र कमीज और पतली सी सांता क्लॉज की ड्रेस उसको गर्म रखने में नाक़ाम लग रही थी।
" ममा ! देखो सैंटा " एक छह या सात साल का बच्चा उसकी ओर उत्सुकता से देखने लगा।
" सारी सुस्ती छोड़कर उसने मुस्कुराते मुखौटे के अंदर ठण्डी साँस भरी और मुठ्ठी टॉफियों के साथ गर्मजोशी से बच्चे की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया।
"थैंक्यू सैंटा !" बच्चे ने लपक कर टॉफियां पकड़ ली।साथ ही उसके पापा ने उसकी, बच्चे के साथ कई तस्वीरें खींच ली।मुस्कुराता बच्चा बाय बोलता चला गया फिर तुरन्त लौट कर उसके पास आया और बोला -
"आप गरीब सेंटा हो ना ।" उसकी मासूम आवाज़ उसके दिल में धँस गई।
" आपने ऐसा क्यों बोला बेटे ?" सेंटा तो बहुत अमीर होता है।"
" अगर आप अमीर हो तो आपने टूटे चप्पल क्यों पहन रखे हैं देखो , बच्चे ने उसके पाँवों की ओर इशारा किया।
" उसने सकपका कर पाँवों को समेटने को कोशिश की पर उन्हें छुपाने की वहाँ कोई जगह ही नहीं थी।शोरूम से आती तेज़ रोशनी उसकी मज़बूरी को ढक नहीं पा रही थी।
" नहीं बेटा ! सैंटा तो दुनिया में सबसे अमीर होता हैं क्योंकि उसका दिल बहुत बड़ा होता है।और जिसका दिल बड़ा होता है वो गरीब कैसे हो सकता।" ये जादुई शब्द बच्चे के पापा ने बोले और उसने बच्चे के पापा की ओर आभार वाली नज़रों से देखा।
बच्चे ने अपने कोमल हाथ उसके खुरदुरे हाथों में रख दिए और हल्के से उन्हें दबाया।उसे लगा अमीर तो अब वो हुआ है।उसके मुस्कुराते सैंटा के मुखौटे के अंदर बह रहे गर्म आँसू किसी को दिखाई नहीं दे रहे थे।
जानकी बिष्ट वाही
मौलिक एवम् प्रकाशित
नॉएडा -उत्तर प्रदेश
Comment
आदरणीया जानकी जी, बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. हार्दिक बधाई. सादर
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