For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा

दौर-ए-जवानी के हमको रंगीन ज़माने याद आये
महफ़िल में यारों से वो साग़र टकराने याद आये

तन्हाई में भूले बिसरे सब अफ़साने याद आये
जिनमें ग़म की रातें गुज़रीं, वो मैख़ाने याद आये

दिल मुट्ठी में लेकर कोई भींच रहा यूँ लगता था
ग़म की काली रातों में जब ख़्वाब सुहाने याद आये

इक मुद्दत के बाद ख़ुशी ने दरवाज़े पर दस्तक दी
दिल घबराया और मुझे कुछ यार पुराने याद आये

सब कुछ खोकर बर्बादी के सहरा में जब जागे हम
अपनों की साज़िश के सारे ताने बाने याद आये

हमने देखा हर शाइर के होटों पर ये मिसरा था
"तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये"

--समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1257

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by surender insan on August 1, 2017 at 10:54am
जी आद. समर कबीर साहब मैंने आदरणीय सौरभ पांडेय जी का कॉमेंट पढ़ा है जी । आदरणीय क्या लय प्रवाह रवानी एक ही चीज है जी । आदरणीय मैं 12 में शब्द लेते हुए कहता हूँ जी। आदरणीय शब्दकला क्या है जी? लय को किस तरह समझ सकता हूँ जी ? मेहरबानी कर बताये जी।
Comment by Samar kabeer on July 26, 2017 at 6:23pm

जनाब सुरेन्द्र इंसान जी आदाब,इस ग़ज़ल पर जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब की टिप्पणी आपके लिये बहुत काम की है,मैंने इसी लिये आपको ये ग़ज़ल पढ़ने की दावत दी है ।
ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by surender insan on July 26, 2017 at 6:05pm
आदरणीय समर कबीर साहब आदाब!वाह वाह बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल जी। ग़जब के अशआर हुए है जी। बेहद उम्दा लाजवाब जी।
दिली मुबारक बाद कबूल करे जी।
Comment by Samar kabeer on February 28, 2017 at 8:55pm
जनाब हेमन्त कुमार जी आदाब, सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Hemant kumar on February 27, 2017 at 11:14am
जनाब कबीर साहब अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाईयां कुबूल फ़रमायें....

इक मुद्दत..................
..................यार पुराने याद आये।
क्या कहने.....लाजवाब
Comment by Samar kabeer on February 19, 2017 at 9:14pm
जनाब राम आश्रय जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Ram Ashery on February 19, 2017 at 8:42pm

कबीर साहब आप ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति अति सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है आप को बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो 

Comment by Samar kabeer on January 19, 2017 at 9:07pm
जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब आदाब,मात्रिक बह्र पर आपने जो विचार साझा किये हैं उसकी एक ख़ूबी ये भी है कि आपने ग़ज़ल की तारीफ़ भी कर दी और मंच को इस बह्र के तअल्लुक़ से महत्वपूर्ण जानकारी भी देदी इस पर एक शैर याद आ गया:-
"उनसे छीके से कोई चीज़ उतरवाई है
काम का काम है,अंगड़ाई की अंगड़ाई है" ख़ैर
न चाहते हुए भी कहना पड़ता है कि जब ये ग़ज़ल मैंने कही थी,मुझे इसकी अहमियत पता थी,एक बला-ए-नागहानी की वजह से तरही मुशायरे में शिर्कत न हो सकी,लेकिन जब ग़ज़ल कही है तो उस पर आप जैसे विद्वान् की दाद की तलब एक बच्चे की तरह ग़ज़लकार के दिल में यक़ीनन होती है,और ये स्वाभाविक भी है,मैं अपने क़लम से तो अपनी ग़ज़ल की तारीफ़ इस तरह तो नहीं कर सकता न ।
मेरे लिये आपके तारीफ़ी कल्मात किसी किताब से कम नहीं हैं जनाब,ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सर्थक हुआ,ग़ज़ल में शिर्कत और दाद-ओ-तहसीन के लिये दिल की तमामतर गहराइयों से शुक्रगुज़ा हूँ ।
और हाँ साहिब,इसके पहले मैंने अपने सवैये भी पोस्ट किये थे,वक़्त मिले तो उन पर भी एक इनायत की नज़र हो जाये मुहतरम ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 19, 2017 at 2:14pm

आदरणीय समर साहब, आपकी इस ग़ज़ल के बरअक्स दो विन्दुओं पर बातें की जा सकती हैं. होनी चाहिए. एक, इस ग़ज़ल का शैल्पिक विन्यास. जो कि बहर की विशिष्टता के कारण जैसा और जितना सहज दिखता है, ये उतना सहज हुआ नहीं करता. क्योंकि ये मात्रिक बहर है. दूसरी बात, इस ग़ज़ल का काफ़िया. जहाँ ’याद आये’ को निभा लेजाना उतना आसान नहीं है जैसा कि प्रतीत होता है. माजी की हर घटना को ’याद आने’ से जोड़ना और उसे शेर में निबद्ध करना शेरीयत से कोसों दूर ले जा सकता है. और पिछले तरही मुशायरे में इस तथ्य को करीब से देखने और जानने का संयोग हुआ. हालाँकि मैं मुशायरे के आयोजन के समय ऑन-लाइन न हो पाया था. 

पहली बात, मात्रिक बहर की. आदरणीय जिस प्रवाह में आपके मिसरे हैं, ऐसे ही प्रवाह में इस बहर को निभाना होता है. वाचन-प्रवाह में तनिक रुकावट हुई नहीं कि मिसरा ’बेबहर’ हुआ, चाहे शब्दों का चयन बहर को संतुष्ट करता हुआ ही क्यों न हो. ऐसे में शब्दों के ’कलों’ की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. जिसकी चर्चा मैं अक्सर मात्रिक छंदों के चर्चा दौरान करता रहता हूँ. यह शब्दों के उच्चारण को भी संतुष्ट करता है. अकसर होता है, कि रचनाकार रचना की पंक्तियों में प्रयुक्त शब्दों के बर्ताव में इस तरह की किसी महीनी को समझते नहीं और उनसे लयभंगता ज़रूर हो जाती है. आपकी ग़ज़ल इस बात की तस्दीक करती है, कि यदि शब्दकलों का कायदे से निर्वहन किया गया तो पंक्तियाँ कितनी प्रवहमान हो जाती हैं.

दूसरी बात, कि जिस व्यापकता और साफ़ग़ोई से ’याद आये’ को निभाया गया है, वह आपकी सोच के विस्तार का परिचायक है. 

दिल मुट्ठी में लेकर कोई भींच रहा यूँ लगता था
ग़म की काली रातों में जब ख़्वाब सुहाने याद आये

इक मुद्दत के बाद ख़ुशी ने दरवाज़े पर दस्तक दी
दिल घबराया और मुझे कुछ यार पुराने याद आये

ये दो अश’आर विशेष तौर पर मेरे कहे को क्या खूब संतुष्ट कर रहे हैं ! वाह वाह !

इन दो शेरों पर चाहूँ तो मैं पन्ने रंग सकता हूँ साहब ! आपने न केवल कमाल किया है, बल्कि इस मंच को इनके सापेक्ष कहन का तरीका भी सिखाया है.

 

दाद ! दाद !! दाद !!!

हार्दिक शुभकामनाएँ 

Comment by Samar kabeer on January 18, 2017 at 2:33pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,आपको ग़ज़ल पसंद आई लिखना सार्थक हुआ,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service