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जनाब सुरेन्द्र इंसान जी आदाब,इस ग़ज़ल पर जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब की टिप्पणी आपके लिये बहुत काम की है,मैंने इसी लिये आपको ये ग़ज़ल पढ़ने की दावत दी है ।
ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
कबीर साहब आप ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति अति सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है आप को बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो
आदरणीय समर साहब, आपकी इस ग़ज़ल के बरअक्स दो विन्दुओं पर बातें की जा सकती हैं. होनी चाहिए. एक, इस ग़ज़ल का शैल्पिक विन्यास. जो कि बहर की विशिष्टता के कारण जैसा और जितना सहज दिखता है, ये उतना सहज हुआ नहीं करता. क्योंकि ये मात्रिक बहर है. दूसरी बात, इस ग़ज़ल का काफ़िया. जहाँ ’याद आये’ को निभा लेजाना उतना आसान नहीं है जैसा कि प्रतीत होता है. माजी की हर घटना को ’याद आने’ से जोड़ना और उसे शेर में निबद्ध करना शेरीयत से कोसों दूर ले जा सकता है. और पिछले तरही मुशायरे में इस तथ्य को करीब से देखने और जानने का संयोग हुआ. हालाँकि मैं मुशायरे के आयोजन के समय ऑन-लाइन न हो पाया था.
पहली बात, मात्रिक बहर की. आदरणीय जिस प्रवाह में आपके मिसरे हैं, ऐसे ही प्रवाह में इस बहर को निभाना होता है. वाचन-प्रवाह में तनिक रुकावट हुई नहीं कि मिसरा ’बेबहर’ हुआ, चाहे शब्दों का चयन बहर को संतुष्ट करता हुआ ही क्यों न हो. ऐसे में शब्दों के ’कलों’ की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. जिसकी चर्चा मैं अक्सर मात्रिक छंदों के चर्चा दौरान करता रहता हूँ. यह शब्दों के उच्चारण को भी संतुष्ट करता है. अकसर होता है, कि रचनाकार रचना की पंक्तियों में प्रयुक्त शब्दों के बर्ताव में इस तरह की किसी महीनी को समझते नहीं और उनसे लयभंगता ज़रूर हो जाती है. आपकी ग़ज़ल इस बात की तस्दीक करती है, कि यदि शब्दकलों का कायदे से निर्वहन किया गया तो पंक्तियाँ कितनी प्रवहमान हो जाती हैं.
दूसरी बात, कि जिस व्यापकता और साफ़ग़ोई से ’याद आये’ को निभाया गया है, वह आपकी सोच के विस्तार का परिचायक है.
दिल मुट्ठी में लेकर कोई भींच रहा यूँ लगता था
ग़म की काली रातों में जब ख़्वाब सुहाने याद आये
इक मुद्दत के बाद ख़ुशी ने दरवाज़े पर दस्तक दी
दिल घबराया और मुझे कुछ यार पुराने याद आये
ये दो अश’आर विशेष तौर पर मेरे कहे को क्या खूब संतुष्ट कर रहे हैं ! वाह वाह !
इन दो शेरों पर चाहूँ तो मैं पन्ने रंग सकता हूँ साहब ! आपने न केवल कमाल किया है, बल्कि इस मंच को इनके सापेक्ष कहन का तरीका भी सिखाया है.
दाद ! दाद !! दाद !!!
हार्दिक शुभकामनाएँ
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