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आदरणीय समर कबीर जी, आपकी तरही ग़ज़ल से यह समझ में आया कि इन काफियों के साथ इस बह्र में कितने सहज मिसरे निकले जा सकते है. मिसरों में लफ़्ज़ों को आप जैसा बरतते हैं, वह सीखने वाली बात है. फिर क्या ही असरदार जुमले निकलते हैं. वाह........
इस बार के मुशायरे में आपकी कमी महसूस हुई, लेकिन कारणों का भी मुझे भान है. खैर आपकी तरही ग़ज़ल यहाँ पढने मिल गई. इस शानदार ग़ज़ल पर दिल से दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर
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