For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कह्र ...

थक गयी है
लबों पे हंसी
शायद लब
आडम्बर का ये बोझ
और न सहन कर पाएंगे
संग अंधेरों के
ये भी चुप हो जाएंगे
कफ़स में कहकहों के
दर्द बेवफाई का
ये छुपा न पाएंगे
बावज़ूद
लाख कोशिशों के
ये
गुज़रे हुए
लम्हों की आतिश से
बंद पलकों से
पिघल कर
तकिये को
गीला कर जाएंगे
सहर की पहली शरर पे
रिस्ते ज़ख्मों का
कह्र लिख जाएंगे


सुशील सरना

मौलिक एवम अप्रकाशित 

Views: 654

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on January 18, 2017 at 6:00pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी प्रस्तुति के भावों को अपने स्नेहिल शब्दों से मान देने का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 18, 2017 at 12:27pm

आद० सुशील सरना जी ,बहुत सुंदर कविता.. क्या मुझे तो ये नज्म की तरह लगी बहुत खूबसूरत ..बहुत बहुत बधाई 

Comment by Sushil Sarna on December 30, 2016 at 2:57pm

आ. मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति को अपनी स्नेहिल प्रशंसा से अलंकृत करने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on December 30, 2016 at 2:57pm

आ.  Mahendra Kumar जी प्रस्तुति के भावों को अपना आत्मीय सम्मान देने का दिल से शुक्रिया।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 29, 2016 at 11:59pm

आदरणीय सुशील सरना सर, बहुत बढ़िया प्रस्तुति. हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Mahendra Kumar on December 29, 2016 at 8:00pm
बंद पलकों से
पिघल कर
तकिये को
गीला कर जाएंगे
सहर की पहली शरर पे
रिस्ते ज़ख्मों का
कह्र लिख जाएंगे ...वाह! बहुत ही बढ़िया कविता लिखी है आपने आदरणीय सुशील सरना जी। आपको बहुत-बहुत बधाई। सादर।
Comment by Sushil Sarna on December 29, 2016 at 3:12pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप जी  प्रस्त्तुति के भावों को सम्मानित करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on December 29, 2016 at 3:10pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्त्तुति को अपने आत्मीय स्नेह से  अलंकृत  करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on December 29, 2016 at 3:09pm

आदरणीय डॉ गोपाल  जी  भाई साहिब प्रस्त्तुति को अपने स्नेहाशीष से पल्लवित करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on December 29, 2016 at 3:06pm

आदरणीया कल्पना भट्ट जी प्रस्तुति के भावों को अपना आत्मीय स्नेह  देने का हार्दिक आभार। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service