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ग़ज़ल -उसका दावा है कि वो भटका नहीं है -- ( गिरिराज भंडारी )

2122   2122    2122

बात कहने का सही लहज़ा नहीं है

या जो रिश्ता था कभी, वैसा नहीं है

 

वो ये कह लें, उनमें तो धोखा नहीं है

पर हक़ीकत है, उन्हें मौक़ा नहीं है

 

गर दशानन आज भी है आदमी में

औरतों में क्या कहीं सुरसा नहीं है ?

 

जो न चल पाया कभी इक गाम अब तक

उसका दावा है कि वो भटका नहीं है

 

ज़ुर्म की गंगा सियासत से है निकली

लाख कह लें, वो कि सच ऐसा नहीं है

 

योजनायें उच्च –निम्नों के लिये हैं

मध्यमों का तो कहीं चर्चा नहीं है

 

वो तवाफ़-ए-ग़ैर को निकला है शायद

मेरा ‘ मैं ’ मुझमें कभी रहता नहीं है

**********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2017 at 2:21pm

आदरणीय गिरिराज सर, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. मतला कुछ यूं कह सकते है क्या?

बात कहने का सही लहज़ा नहीं है

या तो रिश्ता था कभी, वैसा नहीं है

Comment by नाथ सोनांचली on January 3, 2017 at 1:06pm
आदरणीय गिरिराज जी सादर अभिवादन, गजल पर मेरी मुबारकबाद कबूल फरमाए, आपको नववर्ष की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाये प्रेषित हैं
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 3, 2017 at 12:26pm

आदरणीय गिरिराज भाई सब सबसे पहले तो नव बर्ष की आपको ढेर सारी शुभकामनायें प्रेषित कर रहा हूँ / बहुत दिनों बाद मंच पर आना हुआ / आपकी शानदार रचना को पढने का मौका मिला ..हमेश की तरह हर शेर उम्दा है /ढेर सारी बधाई और सादर प्रणाम के साथ  सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 3, 2017 at 12:04pm

आदरणीय समर भाई , हौसला अफज़ाई का तहे सिल से शुक्रिया ।

आदरणीय ,  मरासिम का अर्थ  - 1-  रस्म का बहु वचन  ,  2- प्रेम  ,  3 मेल मिलाप  तीनो दिया गया है , एक बार और सोच के बताइगा   ---   प्रेम और मेल मिलाप के अर्थ मे मिसरा मिसरा क्या सच मे अग्लत है ... 

या मरासिम था कभी, वैसा नहीं है   --    मे  अर्थ को प्रतिस्थापित कर के देखिये --  या ---  प्रेम   था कभी, वैसा नहीं है  ...  

अगर अब भी गलत लगे तो बदलने की कोशिश करूँगा ..   सादर निवेदन ।

Comment by Samar kabeer on January 3, 2017 at 10:47am
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबफ क़ुबूल फ़रमाएं ।
मतला कुछ कमज़ोर है, ऊला मिसरा यूँ होना चाहिये:-
'बात कहता हूँ मगर लहजा नहीं है'
सानी मिसरे में 'मरासिम'बहुवचन है "मरसूम"का यानी। 'रस्में'इसलिये सानी मिसरा दूसरा कहना होगा,देखियेगा ।

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