For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -उसका दावा है कि वो भटका नहीं है -- ( गिरिराज भंडारी )

2122   2122    2122

बात कहने का सही लहज़ा नहीं है

या जो रिश्ता था कभी, वैसा नहीं है

 

वो ये कह लें, उनमें तो धोखा नहीं है

पर हक़ीकत है, उन्हें मौक़ा नहीं है

 

गर दशानन आज भी है आदमी में

औरतों में क्या कहीं सुरसा नहीं है ?

 

जो न चल पाया कभी इक गाम अब तक

उसका दावा है कि वो भटका नहीं है

 

ज़ुर्म की गंगा सियासत से है निकली

लाख कह लें, वो कि सच ऐसा नहीं है

 

योजनायें उच्च –निम्नों के लिये हैं

मध्यमों का तो कहीं चर्चा नहीं है

 

वो तवाफ़-ए-ग़ैर को निकला है शायद

मेरा ‘ मैं ’ मुझमें कभी रहता नहीं है

**********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 935

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2017 at 2:21pm

आदरणीय गिरिराज सर, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. मतला कुछ यूं कह सकते है क्या?

बात कहने का सही लहज़ा नहीं है

या तो रिश्ता था कभी, वैसा नहीं है

Comment by नाथ सोनांचली on January 3, 2017 at 1:06pm
आदरणीय गिरिराज जी सादर अभिवादन, गजल पर मेरी मुबारकबाद कबूल फरमाए, आपको नववर्ष की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाये प्रेषित हैं
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 3, 2017 at 12:26pm

आदरणीय गिरिराज भाई सब सबसे पहले तो नव बर्ष की आपको ढेर सारी शुभकामनायें प्रेषित कर रहा हूँ / बहुत दिनों बाद मंच पर आना हुआ / आपकी शानदार रचना को पढने का मौका मिला ..हमेश की तरह हर शेर उम्दा है /ढेर सारी बधाई और सादर प्रणाम के साथ  सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 3, 2017 at 12:04pm

आदरणीय समर भाई , हौसला अफज़ाई का तहे सिल से शुक्रिया ।

आदरणीय ,  मरासिम का अर्थ  - 1-  रस्म का बहु वचन  ,  2- प्रेम  ,  3 मेल मिलाप  तीनो दिया गया है , एक बार और सोच के बताइगा   ---   प्रेम और मेल मिलाप के अर्थ मे मिसरा मिसरा क्या सच मे अग्लत है ... 

या मरासिम था कभी, वैसा नहीं है   --    मे  अर्थ को प्रतिस्थापित कर के देखिये --  या ---  प्रेम   था कभी, वैसा नहीं है  ...  

अगर अब भी गलत लगे तो बदलने की कोशिश करूँगा ..   सादर निवेदन ।

Comment by Samar kabeer on January 3, 2017 at 10:47am
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबफ क़ुबूल फ़रमाएं ।
मतला कुछ कमज़ोर है, ऊला मिसरा यूँ होना चाहिये:-
'बात कहता हूँ मगर लहजा नहीं है'
सानी मिसरे में 'मरासिम'बहुवचन है "मरसूम"का यानी। 'रस्में'इसलिये सानी मिसरा दूसरा कहना होगा,देखियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service