2122 2122 2122
बात कहने का सही लहज़ा नहीं है
या जो रिश्ता था कभी, वैसा नहीं है
वो ये कह लें, उनमें तो धोखा नहीं है
पर हक़ीकत है, उन्हें मौक़ा नहीं है
गर दशानन आज भी है आदमी में
औरतों में क्या कहीं सुरसा नहीं है ?
जो न चल पाया कभी इक गाम अब तक
उसका दावा है कि वो भटका नहीं है
ज़ुर्म की गंगा सियासत से है निकली
लाख कह लें, वो कि सच ऐसा नहीं है
योजनायें उच्च –निम्नों के लिये हैं
मध्यमों का तो कहीं चर्चा नहीं है
वो तवाफ़-ए-ग़ैर को निकला है शायद
मेरा ‘ मैं ’ मुझमें कभी रहता नहीं है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज सर, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. मतला कुछ यूं कह सकते है क्या?
बात कहने का सही लहज़ा नहीं है
या तो रिश्ता था कभी, वैसा नहीं है
आदरणीय गिरिराज भाई सब सबसे पहले तो नव बर्ष की आपको ढेर सारी शुभकामनायें प्रेषित कर रहा हूँ / बहुत दिनों बाद मंच पर आना हुआ / आपकी शानदार रचना को पढने का मौका मिला ..हमेश की तरह हर शेर उम्दा है /ढेर सारी बधाई और सादर प्रणाम के साथ सादर
आदरणीय समर भाई , हौसला अफज़ाई का तहे सिल से शुक्रिया ।
आदरणीय , मरासिम का अर्थ - 1- रस्म का बहु वचन , 2- प्रेम , 3 मेल मिलाप तीनो दिया गया है , एक बार और सोच के बताइगा --- प्रेम और मेल मिलाप के अर्थ मे मिसरा मिसरा क्या सच मे अग्लत है ...
या मरासिम था कभी, वैसा नहीं है -- मे अर्थ को प्रतिस्थापित कर के देखिये -- या --- प्रेम था कभी, वैसा नहीं है ...
अगर अब भी गलत लगे तो बदलने की कोशिश करूँगा .. सादर निवेदन ।
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