For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -चाँद को चाँद भी नहीं कहते -- ( गिरिराज भंडारी )

2122    1212   22 /112

कर के उल्टी, कभी नहीं कहते

ख़ुद की हो गंदगी ...नहीं कहते

 

कितने बे ख़ौफ हो गये हैं सब
चाँद को चाँद भी नहीं कहते 

 

सादगी देख कर भी पागल में

हम उसे सादगी नहीं कहते

 

फाइदा तो लिये उजालों का 

पर उसे रोशनी नहीं कहते 

 

जब से इमदाद-ए-पाक पाये हैं

हम उन्हें आदमी नहीं कहते

 

क़त्ल करतें हैं ले के नाम–ए-ख़ुदा

हम उसे बंदगी नहीं कहते

 

तुम इसे मौत कह न पाये तो

हम इसे ज़िन्दगी नहीं कहते

***************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 556

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on December 8, 2016 at 7:11pm

क़त्ल करतें हैं ले के नाम–ए-ख़ुदा
हम उसे बंदगी नहीं कहते

तुम इसे मौत कह न पाये तो
हम इसे ज़िन्दगी नहीं कहते

आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब हम तो फ़िदा हो गए सर ... हार्दिक हार्दिक बधाई सर। ... चार पंक्तियाँ पेश हैं इसी क्रम में :

कोई मौत न कह पाया
कोई हयात न कह पाया
मिटा गया ज़िस्म जल के
साथ अपने अपना साया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 8, 2016 at 3:54pm

आपकी इस ग़ज़ल के कुछ शेर तो एकदम से असर करते हैं, आदरणीय गिरिराज भाई. पहले तो मुबारकबाद कुबूल कीजिए, तो फिर उन अश’आर पर आता हूँ. 

सादगी देख कर भी पागल में

हम उसे सादगी नहीं कहते ........... अय-हय, हय-हय ! जिस खूबसूरती से आपने इस शेर को निभाया है यह देर तक असर करता है. कहना न होगा, मतिमूढ़ता और मतिसुन्नता भी पागल के गहरे लक्षण हैं. इनकी निर्लिप्तता और सादगी को कत्त्तई उदाहरण नहीएं बनाया जा सकता. और, सही है, पागल केवल शिजोफ्रेनिक कैटेगरी का ही नहीं होता. 

क़त्ल करतें हैं ले के नाम–ए-ख़ुदा

हम उसे बंदगी नहीं कहते............... बहुत खूब ! जिस व्यवहार को आज आदमी जीने लगा है वह चकित क्या करेगा, दुखी अधिक करता है. इस शेर केलिए बार-बार बधाइयाँ. 

आपकी इस ग़ज़ल के लिए पुनः दाद दे रहा हूँ. 

सादर

Comment by नाथ सोनांचली on December 7, 2016 at 1:45pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सादर अभिवादन, शैर दर शेर दाद के साथ बधाई कबूल फरमाएं।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 6, 2016 at 10:54pm
आदरणीय गिरिराज सर आपने उम्दा गजल कही है सिर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 6, 2016 at 5:53pm

 सादगी देखकर भी दुश्मन की 

हम उसे सादगी नहीं कहते -------------------अनुज जी  शायद यह अधिक बेहतर होगा  पर आप और अच्छा कह सकते हैं , सादर  .

Comment by Samar kabeer on December 6, 2016 at 2:53pm
मुआफ़ी चाहूंगा,तीसरे शैर में आपने ये भाव रखा है कि हम पागल में सादगी देख कर भी उसे सादगी नहीं कहते,इसमें शुतरगुर्बा का दोष नहीं है,लेकिन पागल में सादगी नहीं,वहशत और दीवानगी होती है,इस बिंदू पर इस शैर को देखिये ।
Comment by Samar kabeer on December 6, 2016 at 2:49pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबफ क़ुबूल फरमाएं ।
तीसरे शैर में शुतरगुर्बा का दोष है,ऊला मिसरे में 'मैं' सानी में 'हम'देखिये, सानी मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
वो उसे सादगी नहीं कहते ।
एक बात और ग़ज़ल के चार शैर एक ही तरकीब के हो गये हैं "हम उसे"ये कोई दोष तो नहीं है लेकिन इससे बचना अच्छा होता है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तमन्नाओं को फिर रोका गया है
"धन्यवाद आ. रवि जी ..बस दो -ढाई साल का विलम्ब रहा आप की टिप्पणी तक आने में .क्षमा सहित..आभार "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"आ. अजय जी इस बहर में लय में अटकाव (चाहे वो शब्दों के संयोजन के कारण हो) खल जाता है.जब टूट चुका…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. सौरभ सर .ग़ज़ल तक आने और उत्साहवर्धन करने का आभार ...//जैसे, समुन्दर को लेकर छोटी-मोटी जगह…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।  अब हम पर तो पोस्ट…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service