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बे-रंग-ओ-बू है ये ज़िंदगानी हँसी (नहीं हसीं हसीन वाला)सा कोई मक़ाम दे दो
आदरणीय समर भाई ... आपको याद होगा एक बार फोन मे चर्चा किया था कि , वाब ए अत्फ और इज़ाफत की मात्रा लेने के नियम एक बार मंच मे ज़रूअर साझा कीजियेगा -- अभी ऐसा वक़्त आया लगता है -- जिस न्ज़्म की बात मै कर रहा था --
आदरणीय वो ये है
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ज़रा सुनो तो शेख़ जी
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तुम्हारा नुक़्ता ए नज़र -- यहाँ ता की मात्रा गिरा भी गई है और हर्फे इज़ाफत ए की मात्रा उठाई भी गई है
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दुरुस्त हो तो हो मगर
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अभी तो मै जवान हूँ
आदरणीय समर भाई जी अगर संभव हो तो एक नियम के रूप मे प्रतिक्रिया देने की कृपा करें , ताकि भविष्य मे सदस्य इसका लाभ ले सकें .... सादर ।
आदरनीय बृजेश भाई , कठिन बहर मे खूब सूरत ग़ज़ल कही है आपने , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।
गज़ल अच्छी लगी... ख्याल बेहतरीन हैं, बस आप लिखते जाईए। दिल से बधाई।
प्रतिक्रियाओं से सीखने को भी बहुत मिला।
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