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चांदनी ... (क्षणिका)

चांदनी ... (क्षणिका)

तमाम शब्
माहताब
अर्श पर
मुझे

घूरता रहा
रकीबों सा

निचोड़ता रहा
मन की झील पर
मैं
उसकी
चांदनी

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 869

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Comment by Sushil Sarna on January 4, 2017 at 5:36pm


आदरणीय  Sheikh Shahzad Usmani  जी प्रस्तुति के भावों को आपने आत्मीय मान से पुरस्कृत करने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on January 4, 2017 at 5:36pm


आदरणीय Dr Ashutosh Mishra  जी प्रस्तुति के भावों को आपने आत्मीय मान से पुरस्कृत करने का हार्दिक आभार।

Comment by नाथ सोनांचली on January 4, 2017 at 2:28pm
आदरणीय सुशील सरना जी सादर अभिवादन,

आपकी क्षणिका पढ़कर मजा आ गया, क्या खूब लिखा है आपने। बधाईयाँ सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 4, 2017 at 11:17am

आदरणीय सुशील सर, क्या ही खूब क्षणिका लिखी है आपने. वाह वाह ... बहुत बहुत बधाई. सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 4, 2017 at 12:10am
सुन्दर बहुआयामी भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 3, 2017 at 10:45pm
आदरणीय सरना जी इन सूंदर कल्पना को संजोये इन छडिकाओं के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर

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