ज़िन्दगी ..... (क्षणिका )
हो गया
खामोश बशर
उलझनें
सुलझाने के
फेर में
एक
मकड़ी से
शर्मिंदा
हो गयी
ज़िन्दगी
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आदरणीयSamar kabeer जी प्रस्तुति को उत्साहवर्धक शब्दों से मान देने का हार्दिक आभार। नव वर्ष को आपको सपरिवार मंगलमय हो।
आदरणीय Mahendra Kumar जी प्रस्तुति को स्नेहिल शब्दों से मान देने का हार्दिक आभार। नव वर्ष को आपको सपरिवार मंगलमय हो।
आदरणीय narendrasinh chauhan जी प्रस्तुति आपकी मन मुदित करती प्रशंसा की हार्दिक आभारी है।
खूब सुन्दर रचना
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