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ग़ज़ल (बहुर-फेलुन फेलुन फेलुन फा )

आगे-आगे बढ़ता चल ,
ग़ैरों की भी सुनता चल ।
बिछुड़ गये जो राहों में ,
फिर तू उनसे मिलता चल ।
तूफाँ से टकराना है ,
हिम्मत कर तू बढ़ता चल ।
नफ़रत के शोलों में भी ,
गीत वफ़ा के लिखता चल ।
माना तेरे दुख बेहद ,
फूलों जैसा खिलता चल ।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 11, 2017 at 5:42pm

आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी, इस ग़ज़ल के काफियाबंदी पर संशोधन की प्रतीक्षा कर रहा था. जैसा कि गुनीजनों ने कहा है. यह मंच की परंपरा रही है कि यदि त्रुटी के सम्बन्ध में गुनीजन मार्गदर्शन करते हैं तो यथासमय उसे संशोधित कर लिए जाता है. बहरहाल इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Mohammed Arif on January 8, 2017 at 6:37pm
आदरणीय गिरिराज भंडारीजी , आपका कहना ठीक है । आगामी ग़ज़लों में ध्यायान रखूँगा , मार्ग-दर्शन की छत्रछाया बनाये रखें । सादर ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 8, 2017 at 1:23pm

आदरणीय मो. आरिफ भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।
आ. समर भाई जी ने सही कहा है -- मतले मे  बान्धा गया काफिया ... बढता , और सुनता --  दोष पूर्ण है   ,  स्मान व्यंजन  ता  के पहले का स्वर मेल भी होना चाहिये  ...  जैसे बढ़ाता  और सुनाता    --  ता के पहले   दोनों मे  आ स्वर  मेल हो रहा है ...

Comment by Mohammed Arif on January 7, 2017 at 6:02pm
आधरणीय आशुतोषजी , बहुत-बहुत आभार !
Comment by Mohammed Arif on January 7, 2017 at 6:00pm
आलरणीय गोपाल नारायणजी सादर वंदे , कुशल मार्ग-दर्शन के लिए धन्यवाद । आगामी गज़लों में सावधानी रखूँगा ।
Comment by Mohammed Arif on January 7, 2017 at 5:52pm
आदरणीय रामबली गुप्ताजी आदाब , आपकी निरपेक्ष प्रतिक्रिया से मुझको संबल मिला । आगामी मार्ग-दर्शन भी बनाए रखें ।
Comment by Mohammed Arif on January 7, 2017 at 5:45pm
आदरणीय महेन्द्र कुमार जी आदाब , ग़ज़ल पसंद आई इसके लिए बहुत-बहुत आभार ।
Comment by Mohammed Arif on January 7, 2017 at 5:41pm
आदरणीय जनाब समर कबीर साहब आदाब , हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया । क़ाफिये से मताल्लिक आगामी ध्यान रखूँगा ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 7, 2017 at 4:57pm
इस सूंदर प्रस्तुयि के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय आरिफ जी
Comment by Samar kabeer on January 7, 2017 at 3:26pm
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
ग़ज़ल में क़ाफिये की भूमिका अहम होती है,इस और ध्यान दीजिये,।

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