For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत-गुलसितां दिल का खिलाते रह गए//(अलका ललित )

2122 2122 212
.
गुलसितां दिल का खिलाते रह गए
फासले दिल के मिटाते रह गए
गुलसितां दिल का........

.

चाहतें अपनी बड़ी नादान थी
इश्क की राहें कहा आसान थी
फिर भी हम कसमें निभाते रह गए
फासले दिल के मिटाते ......

.

हाथ में तेरे मेरा जब हाथ हो
जिंदगी कट जाएगी गर साथ हो
हम भरोसा ही जताते रह गए
फासले दिल के मिटाते ...

.

चाह थी तो छोड़ कर ही क्यूँ गया
वास्ता देकर वफ़ा का क्यूँ भला
बेवजह दामन हि थामे रह गए
फासले दिल के मिटाते....


गुलसितां दिल का खिलाते रह गए

फासले दिल के मिटाते रह गए...

.

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on January 26, 2017 at 7:18pm

आदरणीय Dr.Aahutosh Mishra ji  , रचना को समय देने और पसन्द करने के लिए बहुत धन्यवाद । सादर

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on January 26, 2017 at 7:17pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , रचना को समय देने और पसन्द करने के लिए बहुत धन्यवाद । सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 20, 2017 at 3:39pm

आदरणीया अलका जी शानदार गीत रचा है .इस गीत के लिए हार्दिक शुभकामनाये स्वीकार करें सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 19, 2017 at 9:38am

आदरणीया अलका जी , बढिया गीत रचा है आपने , दिल से बधाइयाँ !

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on January 17, 2017 at 4:07pm

आदरणीय Mohammed Arif जी ,रचना को समय देने और पसन्द करने के लिए बहुत धन्यवाद । सादर

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on January 17, 2017 at 4:06pm

आदरणीय समर कबीर जी ,रचना को समय देने और पसन्द करने के लिए बहुत धन्यवाद । सादर

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on January 17, 2017 at 4:03pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी ,आपको प्रयास पसन्द आया इसके लिए धन्यवाद। सादर

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on January 17, 2017 at 3:59pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ,आपको प्रयास पसन्द आया इसके लिए धन्यवाद। आपने रचना को  समय दिया साथ ही उचित मार्गदर्शन के लिए बहुत आभार आपका। आपके सुझाव अनुसार संशोधन किया है।सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 17, 2017 at 12:26pm

आदरणीया अलका ललित जी, बढ़िया गीत लिखा है बधाई. गीत में मुखड़े का बार बार दोहराव प्रस्तुति को बोझिल बना देता है. संभव हो तो टेक की पंक्ति का भी दुहराव न हो. पाठक स्वयं टेक की पंक्ति गुनगुनाने लगते है. सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on January 17, 2017 at 11:55am
आद0 अलका ललित जी सादर अभिवादन, अच्छा गीत है, बधाई स्वीकार करें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
6 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
22 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
22 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service