जब भी गाया तुमको गाया , तुम बिन मेरे गीत अधूरे,
तुमको ही बस ढूंढ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे,
तुमको ही अपने जीवन के नस नस में बहता ज्वार कहा,
मेरे मन की सीपी के तुम ही हो पहला प्यार कहा,
एकाकी मन के आँगन में, बरसो बन कर मेघ घनेरे,
तुमको ही बस ढूंढ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे,
तुम इन्हीं पुरानी राहों के राही हो कैसे भूल गये,
आँखों से आँखों में गढ़ना सपन सुहाने भूल गये,
तुमको ही मन गुनता रहता हर दिन, हर पल, शाम सवेरे,
तुमको ही बस ढूंढ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे,
जो पल तुम संग बीत गया, वो पल मेरे मधुमास प्रिय,
ये जो तुम बिन बीत रहा, ये पल मेरे वनवास प्रिय,
मैं मीरा सी प्रेम दीवानी, आन मिलो घनश्याम मेरे
तुमको ही बस ढूंढ रहा मन, तुम बिन मेरे सपने कोरे,
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
ऑ० अनीता जी अच्छी गीत रचना हुई है .हार्दिक बधाई . पर कई स्थानों पर ले डगमगा रही है .इस पर विचार करें .
यथा -मेरे मन की सीपी के तुम ही हो पहला प्यार कहा, इसे इस प्रकार कहें तो ले और बेहतर होगी
मेरे मन की सीपी के हो तुम ही पहला प्यार कहा,
आदरणीया , गीत रचना अच्छी हुई है , हार्दिक बधाइयाँ । आ. पंकज भाई की सला भी सही लगती है ।
साथ ही -- अधूरे और कोरे की तुकांतता भी बहुत सही नही है -- दूसरे दर्ज़े की तुकांता मानी जाती है , अगर समान व्यंजन के पहले का स्वर मेल भी हो तो उसे उच्च तुकांतता मानते हैं -- जैसे कोरे - मोरे , तोरे ---- ।
ये गीत समीक्षा हेतु ही प्रेषित किया है मैंने, कृपया त्रुटियां बतायें ...
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