For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल(तीर चले चुन चुन के कस कस)

22222222
तीर चले चुन-चुन के कस-कस
मन तो भूला जाता सरबस।1

बूढ़ा बरगद बौराया है
अँगिया- गमछा करते सरकस।2

छौंरा- छौंरी छुछुआये हैं
पुरवा घर-घर करती बतरस।3

बढ़नी लेकर काकी दौड़ी
सच तो सहना पड़ता बरबस।4

फागुन की फुनगी अँखुआयी
चौरा-चौरा होता चौकस।5

आतुर होकर आज हवाएँ
ढूँढ़ रहीं निज मरकज,बेकस।6

मन का मीत कहीं मिल जाये
मनुआ दौड़ चला जस का तस।7

रंग चढ़ा जिसको,वह उछले
बाकी कहते,रहने दो बस।8

कुछ तो घाव 'मनन' भरने दो
मौसम हो जाने दो समरस।9
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

Views: 954

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on February 7, 2017 at 10:49pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय बृजेश जी।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 7, 2017 at 10:28pm
वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर ..सौंधी मिटटी की खुशबु की तरह है ये ग़ज़ल..हार्दिक बधाइयाँ
Comment by Manan Kumar singh on February 7, 2017 at 7:03pm
आदरणीय आशुतोष मिश्र जी, हौसला आफजाई के लिए दिल से शुक्रगुजार हूँ, सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 7, 2017 at 1:06pm

आदरणीय मनन जी सुंदर ग़ज़ल हुयी है ..इस रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Manan Kumar singh on February 6, 2017 at 8:42pm
बहुत बहुत आभारी हूँ आदरणीय समर जी।
Comment by Samar kabeer on February 6, 2017 at 8:37pm
मनन भाई मिटटी भी आप ही की है, और गढ़ा भी आपने,मैंने तो तरकीब बताई है बस । वैसे इस मंच पर तो सभी उस्ताद हैं और सभी शागिर्द ,आपकी मुहब्बतों के लिये शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Manan Kumar singh on February 6, 2017 at 7:30pm
अब यदि शागिर्द कबूल कर लिया जाऊं, तो खुशकिस्मत!
Comment by Manan Kumar singh on February 6, 2017 at 7:27pm
आदरणीय मिथिलेश जी शुक्रिया व आदाब! गजल हो गयी,पर श्रेय आदरणीय समर जी को जाता है।मैं तो बस इतना ही कहूँगा कि मिट्टी मेरी थी,गढ़ा उसे काबिल उस्ताद समर साहब ने।हाँ मेरी तलाश मुकम्मल हुई,
मुझे एक उस्ताद की मिल गये। आप और उस्ताद दोनों को सादर नमन!
Comment by Samar kabeer on February 6, 2017 at 7:17pm
जी,आपके बग़ैर तो ओबीओ मुकम्मल ही नहीं होता भाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2017 at 6:28pm

जी, हम सब में इस नाचीज़ को भी शामिल मानिये. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
28 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
52 minutes ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service