2122 2122 212
*****************
गीत कौवे गा रहे हैं आजकल
कंठ कोयल के भरे हैं आजकल।1
दुश्मनी सारी भुलाकर मसखरे
फिर गले से मिल रहे हैं आजकल।2
गालियाँ देते परस्पर जो रहे
प्रीत के सागर बने हैं आजकल।3
आज दुबके हैं सभी गिरगिट यहाँ
रंग बदलू आ गये हैं आजकल।4
कुर्सियों का ताव इतना बढ़ गया
धुर विरोधी भा गये हैं आजकल।5
लोग ठगते रह गये खुद को यहाँ
और ठगने जा रहे हैं आजकल।6
सींचते हैं जड़ नहीं,बस फुनगियाँ,
कारनामे कब खले हैं आजकल?7
रातभर रोता रहा दीया यहाँ
भोर के चर्चे चले हैं आजकल।8
फिर कुहासा रोशनी को घेरता
बेखबर-से दिन ढ़ले हैं आजकल।9
मौलिक व अप्रकाशित@मनन
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय समर साहब, यथा योग्य गौर करता हूँ। आपके इस्लाह की आकांक्षा सर्वदा ही रहती है।
बहुत बहुत आभार आदरणीय दिनेश जी। देखता हूँ,
बहुत बहुत आभार आदरणीय बृजेश जी।
बहुत बहुत आभार आदरणीय आरिफ भाई ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online