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बदनाम है जरूर मगर नाम तो हुआ
अफसाना जिदगी का सरे आम तो हुआ
आँखों में बंद था कभी सागर शराब का
वह तज्रिबे आशिक से लबे जाम तो हुआ
महफिल थी जम गयी उनके खयाल की
था जश्न थोड़ी देर पर दिल-थाम तो हुआ
उतरा था एक बार मुहब्बत की जंग में
नाकाम जंग होना था नाकाम तो हुआ
कहते है यार इश्क है अंजाम-बद बहुत
होना था जो अंजाम वो अंजाम तो हुआ
उसको न कुछ मिला तो मुझे भी कहाँ मिला
यह बेक़सूर व्यर्थ में बदनाम तो हुआ
नाकाम जो मुहब्बत हो गयी तो क्या करें
दीवाना कह रहा था भई काम तो हुआ .
मरहम बना तमाम वक्त बीत जो गया
जख्मे-जिगर के दर्द को आराम तो हुआ
(मौलिक/अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय डाक्टर गोपाल नारायण जी इस आंहग खेज बहर पर आपकी खूबसूरत गजल पढ कर बहुत अच्छा लगा शेर दर शेर दाद और मुबारक बाद कुबूल करें
बदनाम है जरूर मगर नाम तो हुआ
अफसाना जिदगी का सरे आम तो हुआ अच्छा मतला हुआ है इसके कथ्य के लिये ढेर सारी बधाई , क्योंकि गजल में सब कुछ पहले से ही लोग कह चुके है उसी बात को नये तरीके से कहना होता है और आपने मतले में उसी परंपरा को सफल निर्वाह किया है । हालांकि अगर और गहरे में जाए तो बदनाम है जरूर एक घोष्णात्मक कथन है वर्तमान की घटना है और आगे नाम तो हुआ, हो चुकी घटना है इस लिये दोनो को ण्क ही समय मे कहा जाए तो हमारे ख्याल से बात और भी खूबसूरत हो सकती है ।
बदनाम हो गया हूँ मगर नाम तो हुआ .... हमारी विनम्र राय मे एेसे भी कहा जा सकता है
आँखों में बंद था कभी सागर शराब का
वह तज्रिबे आशिक से लबे जाम तो हुआ वाह वाह वाह क्या बात कही है डाक्टर साहब कमाल का नजरिया है । तज्रिवे आशिक इस लफ्ज की तरकीब पर समर साहब और अन्य उदॅू दां आलिम की राय जानना चाहेगे तज्रिबा और आशिक की इजाफत में तज्रिबये आशिक होना चाहिये और इसका वज्न भी इस मिसरे में कहा तक न्याय करता है बहर शिल्प द्वितीयक बिन्दु है प्राथमिक तो ख्याल है उसके लिये वाह
महफिल थी जम गयी उनके खयाल की
था जश्न थोड़ी देर पर दिल-थाम तो हुआ वाह वाह ख्यालों की महफिल । हर दिले आशिक को जुबां दे दी है आपने हालांकि उला मिसरा में बहर खारिज हो रही हे
महफिल थी जम गई जो हमारे खयाल में
था जश्न थोड़ी देर पर आराम तो हुआ.....यूँ भी कर सकते है और दिल थाम की जगह आराम लफ्ज पर भी विचार कीजियेगा फिर से वही बात कहेंगे शेर का भाव सुभान अल्लाह
उतरा था एक बार मुहब्बत की जंग में
नाकाम जंग होना था नाकाम तो हुआ जंग रूत्रीलिंग शब्द है इस लिये रदीफ बदल जाएगा पुन: देखने का निवेदन है । यहाॅ तो हुआ
रदीफ का निर्वाह उला मिसरे को देखते हुए कठिन लगा हमें इस लिये सुझाव नहीं दिया
कहते है यार इश्क है अंजाम-बद बहुत
होना था जो अंजाम वो अंजाम तो हुआ यहां भी सानी मिसरे का दूसरा रुक्न बहर से बाहर हो रहा है यहाँ भी रदीफ का निर्वाह करना हाेगा अच्छे बुरे को छोड़ दे अंजाम तो हुआ
उसको न कुछ मिला तो मुझे भी कहाँ मिला
यह बेक़सूर व्यर्थ में बदनाम तो हुआ उला मिसरे में उसको नहीं मिला मुझे भी नहीं मिला लेकिन सानी में ये (कौन ) । सानी का अर्थ ये हो रहा है कि चलो और कुछ नहीं तो बदनाम तो हो गया ( रदीफ का तो लफ्ज विचलित कर रहा है गिरह को )
नाकाम जो मुहब्बत हो गयी तो क्या करें
दीवाना कह रहा था भई काम तो हुआ . उला मिसरे के दूसरे रुक्न में मुहब्ब्त लफ्ज से बहर खारिज हो गई है
नाकाम हो गई है मुहब्ब्त तो होने दो
दीवाना कह रहा था चलो काम तो हुआ
मरहम बना तमाम वक्त बीत जो गया
जख्मे-जिगर के दर्द को आराम तो हुआ...बहुत अच्छी बात कही है कथ्य के लिये बधाई । उला मिसरे में (वक्त बीत जो ) बहर से खारिज हो रहा है
हालांकि वक्त बीत गया
मरहम बना था वक्त मेरा बीत ही गया
जख्मे-जिगर के दर्द को आराम तो हुआ
बहुत बहुत बधाई आपको इस गजल के लिये अंत में एक बात और कहना चाहेंगे आपको गजल कहते देख कर और आदरणीय समर साहब को गीत और छंद कहते देख कर बहुत ही प्रसन्नता होती है । ये बहर बहुत ही मधुर है और आप की गजल का कथ्य बहुत शानदार लगा इसलिये इस पर चर्चा करने का साहस किया कि थोडे और प्रयास से गजल को और बहतर बनाया जा सके बस इसी लिहाज से चर्चा की है । ओ बी ओ से जो कुछ सीखा है उसे यहां पोस्ट गजलो के माध्यम से वापसअपनी प्रतिक्रिया देकर अपनी समझ की भी परीक्षा कर रहे हे कि कितना सीखा है । हमारा अभ्यास सही दिशा में जा रहा है कि नहीं । ये विद्वतजन बताएगे । आपका स्न्ेह पूर्व वत ही बना रहेगा । सादर
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