For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समझता था ख़ुद को ज़र्रे से भी कमतर मगर
मिला वज़ूद से तो सैलाब निकला...

ज़ेहन में पड़े हैं अब भी बहुत से किर्च मगर
बहुतों के हिसाब से आफ़ताब निकला...

ढूंढा चाँद को सबने फ़क़त मगर
आँखवाला नहीं कोई भी जनाब निकला...

जाते हैं रस्ते से सब ही इसी तरह
कुछ के पैरों से रस्ता बेहिसाब निकला...

निकला न करो छुप कर हमसे मेरे नसीब
तुमसे भी कभी मेरा इख़्तियार निकला...

फ़ुरसत के पल न ढूंढा करो मिलने के
जब जब रहा ज़ेहन में तेरा दीदार निकला...

गुलों से भी जां जा सकती है गर फेंका जाए बेरुख़ी से
ईश्क में दो फेंक जहां भी तो कोई कसूर न निकला...

सज़दा न किया करो बुतों बेबुतों के सामने हर पल
गर समझ ख़ुद के वज़ूद को तो ख़ुदा न हमसे जुदा निकला...

समझता था ख़ुद को ज़र्रे से भी कमतर मगर
मिला वज़ूद से तो सैलाब निकला...
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 463

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ASHUTOSH JHA on March 4, 2017 at 11:56pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी हार्दिक आभार।
Comment by नाथ सोनांचली on March 4, 2017 at 7:23am
आद0 आशुतोष झा जी सादर अभिवादन। यह रचना गजल तो नही है शायद क्योकि कोई बह्र मुझे समझ में नही आया, पर हाँ भाव बेहद उम्दा है, आपकी भावपूर्ण रचना के लिए कोटिश बधाइयाँ।
Comment by ASHUTOSH JHA on February 28, 2017 at 2:01am
हार्दिक आभार शिज्जु जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 27, 2017 at 11:20am

अच्छी रचना है बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।  नव वर्ष की हार्दिक…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी । नववर्ष की…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।नववर्ष की हार्दिक बधाई…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।।"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लेखन के विपरित वातावरण में इतना और ऐसा ही लिख सका।…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service