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अस्तित्व को ....

जगाते हैं 
सारी सारी रात 
तेरे प्रेम में भीगे 
वो शब्द 
जो तेरे उँगलियों ने 
अपने स्पर्श से 
मेरे ज़िस्म पर 
छोड़े थे 
ढूंढती हूँ 
तब से आज तक 
तेरे बाहुपाश में 
विलीन हुए 
अपने 
अस्तित्व को

सुशील सरना 
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 475

Comment

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Comment by Sushil Sarna on March 2, 2017 at 8:35pm

आदरणीय  Mohammed Arif      साहिब प्रस्तुत्ति के भावों को आत्मीय मान देने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Mohammed Arif on March 1, 2017 at 5:33pm
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, सुंदर अभिव्यक्ति । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on March 1, 2017 at 1:45pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra  प्रस्तुति में निहित भावों को अपना आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on March 1, 2017 at 1:44pm

आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब प्रस्तुति में निहित भावों को अपना आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार। 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 1, 2017 at 10:57am

वाह आ. सुशील सरना सर बहुत बहुत बधाई आपको इस सुंदर रचना के लिए

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 28, 2017 at 9:30pm
आदरणीय सुशील जी इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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