अनबहा समंदर ....
थी
गीली
तुम्हारी भी
आंखें
थी
गीली
हमारी भी
आंखें
बस
फ़र्क ये रहा
कि तुमने कह दी
अपने दिल की बात
हम पर गिरा के
जज़्बातों से लबरेज़
लावे सा गर्म
एक आंसू
और
हमें
न मिल सका
वक़्ते रुख़सत से
एक लम्हा
अपने जज़्बात
चश्म से
बयाँ करने का
चल दिए
अफ़सुर्दा सी आँखों में समेटे
जज़्बातों का
अनबहा
समंदर
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Mahendra Kumar जी प्रस्तुत्ति के भावों को आत्मीय मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी ये आपका स्नेह है की आपने ज़र्रे को आफ़ताब का ख़िताब दे दिया। प्रस्तुति में निहित भावों को अपने आत्मीय सम्मान से पल्लवित करने का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय आशीष यादव जी प्रस्तुत्ति के भावों को आत्मीय मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय Mohammed Arif साहिब प्रस्तुत्ति के भावों को आत्मीय मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।
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