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गजल(पूछते लोग सब.....)

212 212 212 212
 लोग सब पूछते,  हम कहाँ जा रहे
आ गये दिन भले या अभी आ रहे।2

कौन क्या कह गया याद अब है कहाँ
रेवड़ी देखकर खूब ललचा रहे।2

कुल जमा देखिये बादलों की कला
हर बरस बूँद में खार बरसा रहे।3

रात के हाथ से बुझ गयीं बत्तियाँ
बोलते भी जरा कौन दिन ला रहे।4

जोर से पीटते ढ़ोर सब ढ़ोल हैं
कोकिला चुप हुई काग बस गा रहे।5
मौलिक व अप्रकाशित@

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Comment by Manan Kumar singh on March 8, 2017 at 8:51am
शायद
'लोग सब पूछते,हम कहाँ जा रहे', करने से भी निदान हो सकता है।
Comment by Manan Kumar singh on March 8, 2017 at 8:51am
शायद
'लोग सब पूछते,हम कहाँ जा रहे', करने से भी निदान हो सकता है।
Comment by Manan Kumar singh on March 8, 2017 at 8:51am
शायद
'लोग सब पूछते,हम कहाँ जा रहे', करने से भी निदान हो सकता है।
Comment by Manan Kumar singh on March 8, 2017 at 8:45am
....
प्रेरणा परक ...कर सकूँ
Comment by Manan Kumar singh on March 8, 2017 at 8:44am
आदरणीय नीलेश जी आभारी हूँ आपका।शब्द संयोजन के एक पक्ष पर आपका ध्यान आकृष्ट करना सुखद एवं प्रेरने पार्क लगा। देखता हूँ, शायद आपके द्वारा इंगित तथ्य की किंचित भरपाई क्र सकूँ, सादर।
Comment by Manan Kumar singh on March 8, 2017 at 8:40am
आदरणीय आशुतोष मिश्र जी, स्नेह प्रदर्शन से रचना मान बढ़ा है,आभारी हूँ।
Comment by Manan Kumar singh on March 8, 2017 at 8:38am
आदरणीय आरिफ जी,आपका बहुत बहुत आभारी हूँ
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 8, 2017 at 8:01am

आ. मनन जी,
अच्छी ग़ज़ल के लिये बधाई ...
मिसरों में एक अदद "है" की कमी खल रही है ..अपूर्णता सी लग रही है..
आप सामर्थ्यवान लेखक है तो उम्मीद है कि भविष्य में इस पहलू पर भी गौर करेंगे 
सादर  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 8, 2017 at 7:15am
आदरणीय मनन जी आज के चुनावी माहोल में ये सवाल उठना लाजमी है पूरा परिदृश्य है इस रचना में बहुत खूब ढेर सारी बधाई स्वीकार करें आदरणीय
Comment by Mohammed Arif on March 7, 2017 at 10:49pm
आदरणीय मनन कुमार जी आदाब, बहुत बढ़िया ग़ज़ल , अच्छे अश'आर । हर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ क़ुबूल करें ।

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