For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इश्क में खुद जाँ लुटाने आ गए (ग़ज़ल 'राज')

हाजिरी वो ज्यों  लगाने आ गए

याद उनको फिर बहाने आ गए

 

मुट्ठियों में वो नमक रखते तो क्या 

जख्म हमको भी छुपाने आ गए

 

चल पड़े थे हम कलम को तोड़कर

लफ्ज़ हमको खुद बुलाने आ गए

 

जेब मेरी हो गई भारी जरा 

दोस्त मेरे आजमाने आ गए

 

रोज लिखना शायरी उनपर नई  

याद हमको वो फ़साने आ गए

 

शमअ इक है लाख परवाने यहाँ 

इश्क में खुद जाँ  लुटाने आ गए  

 

झील में अश्जार के धुलते  बदन

कुछ परिंदे भी नहाने आ गए 

 

देख कर आकाश पर कौस-ए-क़ज़ह  

लोग आँखों से चुराने आ गए  

 

आशनाई उनकी आँखों से कमाल

अश्क मेरे झिलमिलाने आ गए

 

हाथों पैरों में हिना गीली मगर

बज़्म की रौनक बढाने आ गए

------मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 1254

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2017 at 5:23pm

आद० समर भाई जी सही शब्द क्या है निबाहने या निभाने --थोडा संशय दूर करें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2017 at 5:18pm

आद० समर भाई जी ग़ज़ल के सर्वप्रथम पाठक के रूप में आपका ह्रदय से स्वागत है आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया | मतले में भाई जी अपनी बात नहीं सामने वाले की बात कर रही हूँ ---ऐसे वो सिर्फ हाजिरी ही लगाने आये हैं उन्हें तो जाने के बहाने फिर याद आ गए 

क्या इसको ऐसे लिख दूँ -----हाजिरी वो तो लगाने आ गए ,याद उनको फिर बहाने आ गए 

कौसो क़ज़ा -शब्द मैंने एक उर्दू लर्निंग पुस्तक से लिया था जिसके लेखक रईस सिद्दकी हैं 

चलो आपने सही बताया किन्तु देखिये ऐसे कितना कन्फ्यूजन हो जाता है इस मिसरे को ठीक कर लूँगी

आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया भाई जी 

Comment by Samar kabeer on April 2, 2017 at 4:39pm
'देख कर आकाश पर कौस-ए-क़ज़ह'
नीचे ग़लत लिख दिया था ।
Comment by Samar kabeer on April 2, 2017 at 4:36pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

मतले के दोनों मिसरे अलग अलग हैं,रब्त नहीं इनमें,यूँ किया जा सकता है :-
"हाज़िरी देखो लगाने आ गए
फ़र्ज़ हम अपना निभाने आ गए"

'देख लटका अर्श से कौसो-क़ज़ा"
इस मिसरे में 'लटका'शब्द मुनासिब नहीं लगता,दूसरी बात,'कौसो-कज़ा' ग़लत है सही शब्द है "कौस-ए-क़ज़ह",तीसरी बात अर्श आठवें आसमान को कहते हैं,और कौस-क़ज़ह"पहले आसमान पर होता है,मिसरा यूँ किया जा सकता है :-
'देख कर आकाश पर कौस-क़ज़ह'
देखियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service