हाजिरी वो ज्यों लगाने आ गए
याद उनको फिर बहाने आ गए
मुट्ठियों में वो नमक रखते तो क्या
जख्म हमको भी छुपाने आ गए
चल पड़े थे हम कलम को तोड़कर
लफ्ज़ हमको खुद बुलाने आ गए
जेब मेरी हो गई भारी जरा
दोस्त मेरे आजमाने आ गए
रोज लिखना शायरी उनपर नई
याद हमको वो फ़साने आ गए
शमअ इक है लाख परवाने यहाँ
इश्क में खुद जाँ लुटाने आ गए
झील में अश्जार के धुलते बदन
कुछ परिंदे भी नहाने आ गए
देख कर आकाश पर कौस-ए-क़ज़ह
लोग आँखों से चुराने आ गए
आशनाई उनकी आँखों से कमाल
अश्क मेरे झिलमिलाने आ गए
हाथों पैरों में हिना गीली मगर
बज़्म की रौनक बढाने आ गए
------मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० समर भाई जी सही शब्द क्या है निबाहने या निभाने --थोडा संशय दूर करें
आद० समर भाई जी ग़ज़ल के सर्वप्रथम पाठक के रूप में आपका ह्रदय से स्वागत है आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया | मतले में भाई जी अपनी बात नहीं सामने वाले की बात कर रही हूँ ---ऐसे वो सिर्फ हाजिरी ही लगाने आये हैं उन्हें तो जाने के बहाने फिर याद आ गए
क्या इसको ऐसे लिख दूँ -----हाजिरी वो तो लगाने आ गए ,याद उनको फिर बहाने आ गए
कौसो क़ज़ा -शब्द मैंने एक उर्दू लर्निंग पुस्तक से लिया था जिसके लेखक रईस सिद्दकी हैं
चलो आपने सही बताया किन्तु देखिये ऐसे कितना कन्फ्यूजन हो जाता है इस मिसरे को ठीक कर लूँगी
आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया भाई जी
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