For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222 1222 1222 1222


कभी चंदा, कभी सूरज,कभी तारे संभाले हैं
सुखनवर के नसीबो में मगर पांवों के छाले हैं

हमारी बेगुनाही का यकीं उनको हुआ ऐसे
वो जिनको चाहते हैं अब उन्हीं के होने वाले हैं

मेरी भूखी निगाहों में शराफत ढूंढने वाले
तेरी सोने की थाली में मेरे हक़ के निवाले हैं

हमारी झोपडी का कद बहुत ऊंचा नहीं लेकिन
तेरे महलों के सब किस्से हमारे देखे भाले हैं

भरी महफ़िल में आके पूछते हैं हाल मेरा वो
तकल्लुफ भी निराला है,इरादे भी निराले हैं

चलो अब इस जहाँ की सोच से नज़रे हटा लें हम
जहाँ तक देखते हैं ,हर किसी के हाथ काले हैं

डुबाकर मेरे ख़्वाबों का सफीना पार उतरो तुम
तेरे अहसास की सपने तो लहरों के हवाले हैं

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 1021

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on April 16, 2017 at 10:52am
बहुत बहुत आभार
शुक्रिया
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी
आदरणीय बृजेश कुमार जी
सादर
Comment by मनोज अहसास on April 16, 2017 at 10:48am
आदरणीया राजेश कुमारी जी
सादर नमन
बहुत बहुत शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 5, 2017 at 6:58pm

वाह वाह मनोज कुमार एहसास जी,बहुत अच्छे अशआर हुए हैं जिसके लिए दिल से बधाई लीजिये 

मेरी भूखी निगाहों में शराफत ढूंढने वाले
तेरी सोने की थाली में मेरे हक़ के निवाले हैं-----बहुत ही उम्दा शेर

सुखनवर के नसीबो में मगर पांवों के छाले हैं--सुखनवर के मुकद्दर  में फकत  पांवों के छाले हैं---समर भाई जी ने बहुत उम्दा इस्स्लाह दी है 

हमारी बेगुनाही का यकीं उनको हुआ ऐसे

वो जिनको चाहते हैं अब उन्हीं के होने वाले हैं---ये शेर कुछ उलझा हुआ है बात स्पष्ट नहीं है 

अंतिम शेर के विषय में आदरणीय समर भाई जी से सहमत हूँ जरा से फेर बदल से शुतुर्गुर्बा दोष खत्म हो जाएगा 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 5, 2017 at 6:30pm

आदरनीय मनोज भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही आपने , कुछ शेर बहुत पसंद आये , दिल से बधाइयाँ प्रेषित है ... स्वीकार कीजिये । चर्चा भी सार्थक हुआ ... जिससे मंच लाभांन्वित हुआ ।  सभी का आभार ।

Comment by नाथ सोनांचली on April 4, 2017 at 5:02am
आदरणीय मनोज जी सादर अभिवादन , बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने इस शानदार ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाइयाँ..बड़ों की इस्लाह से काफी कुछ सीखने को मिला..
Comment by नाथ सोनांचली on April 4, 2017 at 5:02am
आदरणीय मनोज जी सादर अभिवादन , बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने इस शानदार ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाइयाँ..बड़ों की इस्लाह से काफी कुछ सीखने को मिला..
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 3, 2017 at 10:51pm
आदरणीय मनोज भाई बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने इस शानदार ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाइयाँ..बड़ों की इस्लाह से काफी कुछ सीखने को मिला..
Comment by Samar kabeer on April 2, 2017 at 10:50pm
//सुखनवर के मगर हिस्से में बस पांवों के छाले हैं//

"सुख़नवर के मुक़द्दर में फ़क़त पैरों के छाले हैं"

ये कैसा रहेगा निलेश जी ?
Comment by मनोज अहसास on April 2, 2017 at 10:14pm
बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय नीलेश जी
मेरी खुशनसीबी कि आज आदरणीय समर कबीर सर
के साथ साथ कई वरिष्ठ लोगों का मार्गदर्शन मिला और
आप भी ग़ज़ल पर आये
ये ग़ज़ल एक फंसी हुई ग़ज़ल थी कई हफ्ते लग गए फिर भी उतना नहीं सुलझा पाया जितना सुलझाना चाहता था
आज बस पोस्ट कर ही दी
सभी का मार्गदर्शन मिल जाये तो फिर पुनः इस पर थोड़ा काम और किया जाये ऐसा सोच रहा हूँ
बहुत बहुत आभार
सादर
Comment by मनोज अहसास on April 2, 2017 at 9:55pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अनुराग जी
मेरे भावों तक आप पहुचे इसके लिए बहुत आभार
आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा
ऐसी आशा है
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
15 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
16 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service