For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सांगोपांग सिंघावलोकन मनहरण घनाक्षरी .//अलका ललित

घनाक्षरी में सांगोपांग सिंहावलोकन छंद के साथ  प्रथम प्रयास 

**

जाइए यहाँ से अभी
सरदी बहुत है जी
बादल आवारा सुनो
गर्मियों में आइए
.
आइए जो गरमी में
बरखा बहार संग
ठंडी सी हवाओं वाला
रस भी तो लाइए
.
लाइए जो बिजली तो
गरज गरज कर
कसक बरसने की
हमे न दिखाइए
.
खाइए न भाव अब
उचित समय पर
कृषकों की आस जरा
पूरी कर जाइए

**

 "मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 1475

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 9, 2017 at 5:40pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , टंकण त्रुटि तो किसी से भी हो सकती है, अपने तो   रचना को निखार  दिया है ,आप गुनीजनो के मार्ग दर्शन से ही इस मंच से लेखन की बारीकियां सीख रही हूँ , बहुत आभारी हूँ की इस अदना से प्रयास को निखारने में आपने समय दिया ।  सादर।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 6, 2017 at 8:37pm

आ० अलका ललित जी  टंकण की त्रुटि मुझसे भी हुयी दरअसल दूसरा विधान (8,8 -8,7) (8,8 -8,7) (8,8 -8,7) (8,8 -8,7) का है . इस त्रुटि के प्रायश्चित स्वरूप मैं आपकी कविता को अपने शब्दों में सांगोपांग सिहावलोकन बनाकर प्रस्तुत कर रहा हूँ . आपकी कविता का स्वरुप बिगाड़ने हेतु क्षमा याचना .

 

जाइए यहाँ से अभी
सरदी कडाके की है

सुनिये जलद वीर

गर्मियों में आइए
.
आइये तो पावस की
वर्षा बहार लेकर  
शीतल समीर् वाला
रस-गंध  लाइए
.
लाइए ह्रदय मध्य    
चपला की कौंध और   
गीत रिमझिम वाला  
पंचम में गाइए
.
गाइए पयोद-राग   
धरती को सींच सींच  
आस कृषकों की आज  
पूरी कर जाइए

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 5, 2017 at 10:05pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ,आप गुनीजनो के मार्ग दर्शन से ही इस मंच से लेखन की बारीकियां सीख रही हूँ , बहुत आभारी हूँ की इस अदना से प्रयास को निखारने में आपने समय दिया । अभी यही सुधार का प्रयास किया है यदि सही हो तो पोस्ट Edit करूँ  । यदि फिर भी कोई त्रुटि हो तो कृपया निर्देश दीजियेगा । सादर।

जाइए यहाँ से अभी
सरदी बहुत है
बादल आवारा सुनो
गर्मियों में आइए
.
आइयेगा गरमी में
बरखा बहार ले
ठंडी सी हवाओं वाला
रस भी तो लाइए
.
लाइए जो बिजली तो
गरजना करके
कसक बरसने की
हमे न दिखाइए
.
खाइए न भाव अब
उचित समय पे
कृषकों की आस जरा
पूरी कर जाइए

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 5, 2017 at 1:35pm

अभी भी वर्ण विन्यास ठीक नहीं है. आपने  (8,8 8,7)  (8,8 8,7)  (8,8 8,7)  (8,8 8,7) विधान  किया है जबकि यह ((8,8 8,8 )  (8,8 8,)  (8,8 8,8 )  (8,8 8,8 )   अथवा ( 87 87) (87 87)  (87,87 ) (87 87) होना चाहिये     SAADAR

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 4, 2017 at 10:05pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , प्रयास को समय देने व त्रुटियां इंगित करने के लिए आपका बहुत आभार ।सुधार का प्रयास किया है उम्मीद है अब सही होगा। यदि फिर भी कोई त्रुटि हो तो कृपया निर्देश दीजियेगा । सादर।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 4, 2017 at 7:49pm

जाइए यहाँ से अभी सरदी बहुत है जी
            बादल आवारा सुनो गर्मियों में आइए

.      आइए जो गरमी में बरखा बहार संग
            ठंडी सी हवाओं वाला रस बरसाइए
       बरसाइए गा तब गरज गरज कर
            कसक बरसने की हमे न दिखाइए

       दिखाइए बरस के उचित समय पर 
            कृषकों की आस जरा पूरी कर जाइए

इस सिंहावलोकन की विशेष त्रुटि पर विद्वानों का ध्यान नहीं गया – यदि आदि और अंत तीन वर्णिक है तो इसका पूरा निर्वाह होना चाहिए . चौथी पंक्ति में बरसाइये तक तो ठीक है . पर आगे पान्चवी पंक्ति में  फिर बरसाइये से चरण का प्रारम्भ गलत है . यहाँ ‘साइये’ से शुरुआत होनी चाहिए इसी प्रकार छठी पंक्ति में  दिखाइये  तो सही पर फिर सातवी पंक्ति ‘खाइए’ से शुरू होनी चाहिए . सादर

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 4, 2017 at 6:04pm

आदरणीय बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी, प्रयास को समय देने व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आपका ,आपके सुझाव अनुसार सुधार किया है उम्मीद है अब सही होगा। सादर।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 4, 2017 at 10:18am
आ0 अलका जी सुधार के पश्चात सांगोपांग सिंहावलोकन का विधान निभाते हुए अच्छी रचना बन गई है।
किसान की में प्रारम्भ में जगन(121) होने से लय बाधित हो रही है। कृषकों की करने से प्रवाह सही हो जाएगा। आप स्वयं देखिए।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 3, 2017 at 11:19pm

आदरणीय Saurabh Pandey ji ,  प्रयास को समय देने व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आपका। सादर।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2017 at 10:59pm

आदरणीया, इस प्रयास से मन प्रसन्न है. हार्दिक शुभकामनाएँ ..

सुधीजनों ने विधान पर आप्से जो विन्दु साझा किये हैं उन पर अवश्य ध्यान दीजिएगा. वस्तुतः अभ्यास ही रचनाकर्म को साधने का मूल है. आप निरंतर अभ्यासरत रहें. साथ ही, आप विधान के प्रति संवेदनशील रहें. ैससे रचनाओं में ताकिक सुधार आएगा. 

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बहुत बहुत आभार आ. सौरभ सर ..आप से हमेशा दाद उन्हीं शेरोन को मिलती है जिन पर मुझे दाद की अपेक्षा…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय नीलेश भाई,  आपकी इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद और कामयाब अश'आर पर…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. शिज्जू भाई "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,आपको धुआ स्वीकार नहीं हैं तो यह आपका मसअला है. मैंने धुआँ क़ाफ़िया  प्रयोग में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल के फीचर किए जाने की हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह, आदरणीय हरिओम जी, वाह।  आप कुण्डलिया छंद के निष्णात हैं। आपके सहभागिता के लिए हार्दिक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  आपकी छंद रचना और सहभागिता के लिए धन्यवाद।  योगी जन सब योग को,…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"छंदों की प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय अशोक जी"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अजय गुप्ता जी सादर, प्रदत्त चित्र को छंद-छंद परिभाषित किया है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक  भाईजी  छंदों की प्रशंसा और प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार योग के लाभ बताते सुन्दर कुण्डलिया छंद रचे हैं…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  छंदों की प्रशंसा और सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service