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समीक्षार्थ 

मत्तगयन्द सवैया...... (एक प्रयास)

..

मंगल हो नववर्ष खिले मन वैभव ज्ञान सगे हरषाए

शीतल वायु बहे नित वासर धान फलें नहिं रोग सताए
भाग्य बने अरु धर्म जगे नवरोज़ शुभ यश गान सुनाए
जीवन में नित प्रीत पले रिपु बैर तजें स सखा बन जाए

..

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment

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Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 2, 2017 at 4:23pm

धन्यवाद ,आदरणीय  Ashok Kumar Raktale ji , प्रयास पर समय देने व त्रुटियां बताने के लिए बहुत आभार आपका। सुधार का प्रयास किया है उम्मीद है अब सही होगा ।  सादर। 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 2, 2017 at 4:11pm

आभार आद0 सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी, प्रयास पर उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद। सादर। 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 1, 2017 at 11:35pm

आदरणीया अलका ललित जी सादर, मत्तगयन्द सवैया पर बहुत सुंदर प्रयास हुआ है किन्तु असावधानीवश एक दो जगह कुछ चूक भी हुई है. देख लें. सादर.

शीतल/ वायु ब/हे हर/ दिन ओ/ धान फलें नहिं रोग सताए

भाग्य ब/ने अरु/ धर्म ज/गे नक्ष/त्र हो शु/भ यश /गान सुनाए

जीवन/ में नित/ प्रीत प/ले रिपु/बैर त/जें औ स/खा बन जाए

Comment by नाथ सोनांचली on March 29, 2017 at 7:23am
आद0 अलका ललित जी सादर अभिवादन, बहुत खूबसूरत छंद, बधाई आपको
Comment by Samar kabeer on March 28, 2017 at 9:18pm
बहुत बहुत धन्यवाद ।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on March 28, 2017 at 8:57pm

आदरणीय समर कबीर जी ,सादर नमस्कार ,छन्द का प्रयास आपको पसंद ,आया बहुत धन्यवाद ,

मात्राएँ इस प्रकार है:-

मत्तगयन्द सवैया 23 वर्णों का छन्द है, जिसमें सात भगण के पीछे यानि बाद दो गुरुओं का योग होता है.

211  211  211  211  211  211  211  22

Comment by Samar kabeer on March 28, 2017 at 6:31pm
मोहतरमा अलका ललित जी आदाब,छन्द तो अच्छा है,बधाई स्वीकार करें,इसकी मात्राएँ भी लिख देतीं तो कुछ कहने में आसानी होती ।

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