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सांगोपांग सिंघावलोकन मनहरण घनाक्षरी .//अलका ललित

घनाक्षरी में सांगोपांग सिंहावलोकन छंद के साथ  प्रथम प्रयास 

**

जाइए यहाँ से अभी
सरदी बहुत है जी
बादल आवारा सुनो
गर्मियों में आइए
.
आइए जो गरमी में
बरखा बहार संग
ठंडी सी हवाओं वाला
रस भी तो लाइए
.
लाइए जो बिजली तो
गरज गरज कर
कसक बरसने की
हमे न दिखाइए
.
खाइए न भाव अब
उचित समय पर
कृषकों की आस जरा
पूरी कर जाइए

**

 "मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 1463

Comment

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Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 9, 2017 at 5:40pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , टंकण त्रुटि तो किसी से भी हो सकती है, अपने तो   रचना को निखार  दिया है ,आप गुनीजनो के मार्ग दर्शन से ही इस मंच से लेखन की बारीकियां सीख रही हूँ , बहुत आभारी हूँ की इस अदना से प्रयास को निखारने में आपने समय दिया ।  सादर।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 6, 2017 at 8:37pm

आ० अलका ललित जी  टंकण की त्रुटि मुझसे भी हुयी दरअसल दूसरा विधान (8,8 -8,7) (8,8 -8,7) (8,8 -8,7) (8,8 -8,7) का है . इस त्रुटि के प्रायश्चित स्वरूप मैं आपकी कविता को अपने शब्दों में सांगोपांग सिहावलोकन बनाकर प्रस्तुत कर रहा हूँ . आपकी कविता का स्वरुप बिगाड़ने हेतु क्षमा याचना .

 

जाइए यहाँ से अभी
सरदी कडाके की है

सुनिये जलद वीर

गर्मियों में आइए
.
आइये तो पावस की
वर्षा बहार लेकर  
शीतल समीर् वाला
रस-गंध  लाइए
.
लाइए ह्रदय मध्य    
चपला की कौंध और   
गीत रिमझिम वाला  
पंचम में गाइए
.
गाइए पयोद-राग   
धरती को सींच सींच  
आस कृषकों की आज  
पूरी कर जाइए

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 5, 2017 at 10:05pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ,आप गुनीजनो के मार्ग दर्शन से ही इस मंच से लेखन की बारीकियां सीख रही हूँ , बहुत आभारी हूँ की इस अदना से प्रयास को निखारने में आपने समय दिया । अभी यही सुधार का प्रयास किया है यदि सही हो तो पोस्ट Edit करूँ  । यदि फिर भी कोई त्रुटि हो तो कृपया निर्देश दीजियेगा । सादर।

जाइए यहाँ से अभी
सरदी बहुत है
बादल आवारा सुनो
गर्मियों में आइए
.
आइयेगा गरमी में
बरखा बहार ले
ठंडी सी हवाओं वाला
रस भी तो लाइए
.
लाइए जो बिजली तो
गरजना करके
कसक बरसने की
हमे न दिखाइए
.
खाइए न भाव अब
उचित समय पे
कृषकों की आस जरा
पूरी कर जाइए

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 5, 2017 at 1:35pm

अभी भी वर्ण विन्यास ठीक नहीं है. आपने  (8,8 8,7)  (8,8 8,7)  (8,8 8,7)  (8,8 8,7) विधान  किया है जबकि यह ((8,8 8,8 )  (8,8 8,)  (8,8 8,8 )  (8,8 8,8 )   अथवा ( 87 87) (87 87)  (87,87 ) (87 87) होना चाहिये     SAADAR

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 4, 2017 at 10:05pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी , प्रयास को समय देने व त्रुटियां इंगित करने के लिए आपका बहुत आभार ।सुधार का प्रयास किया है उम्मीद है अब सही होगा। यदि फिर भी कोई त्रुटि हो तो कृपया निर्देश दीजियेगा । सादर।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 4, 2017 at 7:49pm

जाइए यहाँ से अभी सरदी बहुत है जी
            बादल आवारा सुनो गर्मियों में आइए

.      आइए जो गरमी में बरखा बहार संग
            ठंडी सी हवाओं वाला रस बरसाइए
       बरसाइए गा तब गरज गरज कर
            कसक बरसने की हमे न दिखाइए

       दिखाइए बरस के उचित समय पर 
            कृषकों की आस जरा पूरी कर जाइए

इस सिंहावलोकन की विशेष त्रुटि पर विद्वानों का ध्यान नहीं गया – यदि आदि और अंत तीन वर्णिक है तो इसका पूरा निर्वाह होना चाहिए . चौथी पंक्ति में बरसाइये तक तो ठीक है . पर आगे पान्चवी पंक्ति में  फिर बरसाइये से चरण का प्रारम्भ गलत है . यहाँ ‘साइये’ से शुरुआत होनी चाहिए इसी प्रकार छठी पंक्ति में  दिखाइये  तो सही पर फिर सातवी पंक्ति ‘खाइए’ से शुरू होनी चाहिए . सादर

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 4, 2017 at 6:04pm

आदरणीय बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी, प्रयास को समय देने व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आपका ,आपके सुझाव अनुसार सुधार किया है उम्मीद है अब सही होगा। सादर।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 4, 2017 at 10:18am
आ0 अलका जी सुधार के पश्चात सांगोपांग सिंहावलोकन का विधान निभाते हुए अच्छी रचना बन गई है।
किसान की में प्रारम्भ में जगन(121) होने से लय बाधित हो रही है। कृषकों की करने से प्रवाह सही हो जाएगा। आप स्वयं देखिए।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 3, 2017 at 11:19pm

आदरणीय Saurabh Pandey ji ,  प्रयास को समय देने व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आपका। सादर।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2017 at 10:59pm

आदरणीया, इस प्रयास से मन प्रसन्न है. हार्दिक शुभकामनाएँ ..

सुधीजनों ने विधान पर आप्से जो विन्दु साझा किये हैं उन पर अवश्य ध्यान दीजिएगा. वस्तुतः अभ्यास ही रचनाकर्म को साधने का मूल है. आप निरंतर अभ्यासरत रहें. साथ ही, आप विधान के प्रति संवेदनशील रहें. ैससे रचनाओं में ताकिक सुधार आएगा. 

सादर

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