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ग़ज़ल...प्रीत का मौसम सुहाना आ गया

2122 2122 212
प्रीत का मौसम सुहाना आ गया
चोट खा के मुस्कुराना आ गया

चल रही पुरवा बसन्ती झूम के
टेसुओं को खिलखिलाना आ गया

खिल उठे मधुवन तुम्हारे नाम से
हर कली को गीत गाना आ गया

याद आई फिर तुम्हारी साँझ में
आँसुओं को गुनगुनाना आ गया

दीप ये किसने जलाये बाम पे
याद फिर गुजरा ज़माना आ गया

खिल उठी विस्तृत गगन में चाँदनी
रात को लोरी सुनाना आ गया
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 19, 2017 at 8:35pm
आदरणीय डा.साहब आपके स्नेहमयी उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ..सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 18, 2017 at 4:19pm

आदरणीय ब्रिजेश जी   आपकी यह ग़ज़ल मुझे बहुत पसंद आयी ..गुदगुदाती सी इस शानदार ग़ज़ल  के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 16, 2017 at 11:56pm
मुझे ख़ुशी है आदरणीय की रचना से आपको उस युग का आभास हुआ..वो महान साहित्यकारों का युग था। मैं अभी विद्यार्थी हूँ तो कोशिश करूँगा जितना अधिक सीख सकूँ..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 16, 2017 at 5:47pm
सर्व प्रथम रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय अनुराग जी..सुधार की गुंजाईश सदैव बनी रहती है..अगर आप थोड़ा और प्रकाश डालें तो मेरे लिए आसानी होगी..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 16, 2017 at 5:15pm
आदरणीय 'कुशक्षत्रप' जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार..सादर
Comment by नाथ सोनांचली on April 16, 2017 at 11:13am
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 15, 2017 at 10:46pm
आदरणीय समर साहब सादर अभिवादन..हमेशा की तरह आपके स्नेह के लिए हार्दिक आभार..
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 15, 2017 at 10:44pm
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी रचना के भावों को अंतर से महसूस करने के लिए कोटि कोटि आभार..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 15, 2017 at 10:43pm
आदरणीय नीलेश जी सादर अभिवादन..आप जैसे मर्मज्ञ जब जब हौसलाफजाई करते हैं बाकई में प्रसन्नता दोगुनी हो जाती है..
Comment by Samar kabeer on April 15, 2017 at 5:58pm
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

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