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आत्महत्या
के कई ख्याल,
मेरे दिमाग में आते है
उस तरह
जैसे बच्चों को को अपने खिलौनों के आते है।
खुद को
बौना महसूस करता हूँ
हर उस सेकण्ड
जब भी जीवन-मृत्यु के चक्र के
बीच
देखता हूँ इतिहास में मरे हुए लोग।
बना रहा था
एक चित्र,
मोनालिसा की बहन का/
और
मेरी होने वाली बेटी को पीले रंग के ब्रश से प्यार है।
इस वक़्त
हमारे घर के एकमात्र टीवी में
बना हुआ था माहौल/ इटली के भूकंप का।
टीवी की धारारेखीय शक्ल ने रिपोर्टर
के वाक़् यन्त्र का सहारा लेकर
बताया,
"एक सो सोलह लोगों की मौत"
मोनालिसा की बहन
बन गयी उसकी मौसी की शक्ल में
और बेटी के हाथ ने
जानबूझकर गिरा दिया रंग का डिब्बा/
मेरी बेटी के हाथ पीले हो गए
(समय से सोलह साल पहले)

जब भी मेरे दाँतो पर
रगड़ खाता है,
पेप्सोडेंट का चिपचिपा पदार्थ
तो हंस देता हूँ
"ब्रह्माण्ड की तीन चीजों पर"
मेरे कुतुबमीनारनुमा कमरे की
रोती हुई दीवार
पर
राजगुरु और सुखदेव की
आधी रंगीन फ़ोटो के
बीच लटकी हुई एक कील
मुझे हंसते हुए कई बार देख लेती है।
और
मुझे
वह इंसान बहुत पैसे वाला लगता है,
जो पैंसठ रुपये में
बीच वाली फ़ोटो खरीद ले गया था।
मुझे मंगलवार का दिन; दिन जैसा नही लगता।
हनुमान जी की करोड़ों फोटोज पर
चढ़ाये गए
चांदी के कई गोल्ड पेपर।
उन्हीं दिनों
एक मन्दिर के पीछे,
मां की कोख में मर गया भावी आइंस्टीन।
उसमे कैल्सियम की कमी नही थी।
सिल्वर, गोल्ड और कैल्सियम
ब्रह्माण्ड के यही वे तीन तत्व थे।
जब भी कोई आधे आदमी
या
पूरी औरतें,
दिमाग तेज करने का सबसे आसान उपाय ढूंढता है
तो मुझे
अपने सातवीं क्लास के दोस्त
सलमान खान की याद आती है।
क्या आपको पता है,
एक जिन्दा आदमी का
दिमाग बहुत नर्म होता है
और इसे चाकू से/ आसानी से काटा जा सकता हैं।
सलमान खान पानी पीकर मरा था।
वो स्कूल के दिन थे।
और मैं अनपढ़ था।

( जब भी किसी ऊंट के मुंह में जीरा देखता हूँ तो थोड़ी बहुत कविता लिखना सीख लेता हूँ। मैं किसी कॉफी अन्नान को नही जानता )
-कत्ले आम

- कवि बृजमोहन स्वामी 'बैरागी'

【मौलिक एवम् अप्रकाशित 】

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Comment by Samar kabeer on April 21, 2017 at 11:12pm
:)))
Comment by बृजमोहन स्वामी 'बैरागी' on April 20, 2017 at 10:13pm
धन्यवाद सतविंदर कुमार जी।
जब आप भाव प्रधान पक्ष समझ लेंगे तब यह ब्रेकेट्स की आवर्तिता भी समझ में आ जयेगी। धन्यवाद अगेन।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 19, 2017 at 9:07pm
आदरणीय कवि बैरागी जी,इस प्रस्तुति में आप ने बहुत कुछ कहने की कोशिश की है और मैंने समझने की बहुत सारी कोशिश की है।अतुकांत कविताओं को समझने में मुझे वैसे भी समय लगता ही है।कई बार पुनः भी पढूँगा ही।फिलहाल के लिए सादर बधाई!मुझे कविता में यूँ ब्रकेट्स कीआवृति मुझे जरा असहज अवश्य लगी!सादर
Comment by नाथ सोनांचली on April 18, 2017 at 4:26am
आद 0 बैरागी जी सादर अभिवादन, आपकी यह दूसरी रचना भी पहली जैसी ही रही, क्या लिखे, और क्यो, सब मुझ जैसे प्राथमिक पास इंसान के समझ से परे है। शेष गुणीजन बताएंगे
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 17, 2017 at 9:55pm

रचना समझ में आने के बाद टेलीग्राम कर के सूचित करने का प्रयत्न करूंगा 
.
सादर 

कृपया ध्यान दे...

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