For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चला जाता हूँ/
उस सड़क पर
जहां लिखा होता है-
"आगे जाना मना है।"

मुझे
खुद के अंदर
घुटन होती है
मैं समझता हूँ
लूई पास्चर को,
जिसने बताया की
करोड़ों बैक्टिरिया हमें अंदर ही अंदर खाते हैं
पर वो लाभदायक निकलते है
इसलिए
वो मेरी घुटन के जिम्मेदार नही हैं

कुछ और है जो मुझे खाता है/
चबा-चबा कर।
आपको भी खाता होगा कभी शायद
नींद में/जागते हुए/ या रोटी को तड़फते झुग्गी झोंपड़ियों के बच्चों को निहारती आपकी आँखों को
…धूप ,
नही आयगी उस दिन
दीवारें गिर चुकी होंगी या
काली हो जाएँगी/आपके बालों की तरह
आप उन पर गार्नियर या कोई महंगा शम्पू नही रगड़ पाओगे
आप की वो काली हुई दीवार
इंसान के अन्य ग्रह पर रहने के सपने को और भी ज्यादा/ आसान कर देगी।
अगर आपको भी है पैर हिलाने की आदत,
तो हो जाएं सावधान
'सूरज' कभी भी फट सकता है ; दो रुपये के पटाके की तरह
और चाँद हंसेगा उस पर
तब हम,
गुनगुनाएंगे हिमेश रेशमिया का कोई नया गाना।

तीन साल की उम्र तक
आपका बच्चा नहीं चल रहा होगा तो
…आप कुछ करने की बजाए कोसेंगे
बाइबिल और गीता को
क्या आपको पता है?
मौत हमेशा रेंगकर आती है?
हाँ
लेकिन उसका रेंगना देखेंगे
तब तक आपका बैडरूम बदल चूका होगा
एक तहखाने में
और
आप कुछ नही कर पाओगे। आपकी तरह मेरा दिमाग
या
मेरा आलिंद-निलय का जोड़ा,
सैकड़ों वर्षों से कोशिश करता रहा है कि
जब
मृत्यु घटित होती है,
तो शरीर से कोई चीज बाहर जाती है या न्हीं?
आपके शरीर पर कोई नुकीला पदार्थ खरोंचेगा
..और अगर धर्म;
एक बार पदार्थ को पकड़ ले,
तो विज्ञान की फिर कोई भी जरूरत नहीं है।

मैं मानता हूँ कि हम सब बौने होते जा रहे है/कल तक हम सिकुड़ जायेंगे/तब दीवार पर लटकी आइंस्टीन की एक अंगुली हम पर हंसेगी।
और आप सोचते होंगे कि मैं कहाँ जाऊंगा?
मैं सपना लूंगा एक लंबा सा/उसमें कोई
"वास्को_डी गामा" फिर से/
कलकत्ता क़ी छाती पर कदम रखेगा
और आवाज़ सुनकर मैं उठ खड़ा हो जाऊंगा एक भूखा बच्चा,

रेंगती मौतों के स्टेडियम में,
वियतनाम की खून से सनी
एक गली में /अपनी माँ को खोज लेता है/उस वक़्त
ऐश्वर्या राय अपने कमरे
(मंगल ग्रह वाला) में
सो रही है
और दुबई वाला उसका फ्लैट खाली पड़ा है
मेरे घर में चीनी खत्म हो गयी है
..मुझे उधार लानी होगी
..इसलिये बाक़ी कविता कभी नही लिख पाउँगा।

(हालांकि आपका सोचना गलत है)

-कत्ले आम।
(यह घोर चिंता की विषय है)

कवि बृजमोहन स्वामी "बैरागी"

[मौलिक एवम् अप्रकाशित]

Views: 834

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजमोहन स्वामी 'बैरागी' on April 17, 2017 at 1:46pm
मान्यवर सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी,
बौद्धिकता की अधिकता उपयोग में लें और दिमाग पर ज़ोर देकर वर्तमान की मार्मिकता और "टीआरएस" से जोड़कर देखें। जरूरत समाजह में आयगी। साइकोलॉजी का थोडा बहुत मिक्सप है।

धन्यवाद आ० सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी
Comment by नाथ सोनांचली on April 16, 2017 at 11:22am
आद0 बैरागी जी सादर अभिवादन, इस रचना को कई बार पढ़ा और हर बार इसे समझने की भरसक कोशिश की, पर ऊपर कुछ और, बीच मे कुछ और तथा अंत आते आते चीनी खत्म, साहित्य का तो ज्ञान मुझे उतना नही, पर रचना रसास्वादन का भूखा हूँ, पर जब अर्थ भी पूरी तरह समझ मे आतें, शायद यह मेरी नाकामी है कि इस गूढ़ रहस्य की रचना को पूरी तरह आत्मसात न कर सका। खैर इतनी खूबसूरत रचना के लिए दिल खोलकर बधाई।
Comment by Samar kabeer on April 15, 2017 at 10:40pm
मैं पढ़ नहीं सकता,आप ही को बात समझाना होगी मुहतरम, मेरा प्रश्न तार्किकता को लेकर है ।
Comment by बृजमोहन स्वामी 'बैरागी' on April 15, 2017 at 7:34pm
मौत हमेशा रेंगकर आती है ....
क्योंकि दुनिया में एक भी ऐसा मज़हबी दानिशवर (बुध्दिजीवी) नहीं मिला, जो तासीर के ...मुताबिक ठंडा हो।
(ठंडे शब्द को गहराई से लीजिये)

हाँ जी samar kbeer ji आपका धन्यवाद।
और रही बात मौत के रेंगकर या न रेंगकर आने की
तो आपसे अनुरोध है की इसे समझने से पहले आप कृपया
आइजक डिज़रैली की महान किताब "लेखकों के झगड़े" पढ़ लीजिये।

धन्यवाद अगेन।
Comment by Samar kabeer on April 15, 2017 at 6:48pm
जनाब बृजमोहन स्वामी"बैरागी"जी आदाब, आपकी आधी कविता पढ़ी आनन्द भी आया,आपने जिस तरह कविता में दानिशवरों के नाम इस्तेमाल किये हैं उससे पता चलता है कि आपने इन सबको ख़ूब पढ़ा होगा ।
"आपको पता है,
मौत हमेशा रेंग कर आती है'
इस पंक्ति पर मुझे ऐतिराज़ है, मौत हमेशा रेंग कर तो नहीं आती ?इसमें मुझे "हमेशा"शब्द पर ऐतिराज़ है, बाक़ी आपका लेखन प्रभावित करता है,इसके लिये आपको मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 14, 2017 at 8:51am

मान्यवर;Nilesh Shevgaonkar जी, मैने यहां वर्तमान कालिक परिदृश्य दर्शन के लिए "कलक्त्ता" लिखा है। कालीकट से तो उस वक़्त के भारत की झांकी पेश हो जाती जहां (लगभग) नार्मल सा था (आज की अपेक्षा) कालीकट और कलकत्ता में भौगोलिक के साथ साथ जो भावनाओं का जो अंतर है , उसे दर्शाने की कोशिश की है।


आदरणीय तो फिर वास्को-द-गामा की जगह क्रिस्टोफर कोलंबस भी कर देते :))))

Comment by बृजमोहन स्वामी 'बैरागी' on April 13, 2017 at 6:21pm
माननीय मोहम्मद आरिफ जी, शुक्रिया आपका। मेरी साइज़ो को झेलने के लिए।
आपको सादर नमस्कार। आदाब।
आपका बड़प्पन है जी।
मैं इसी टाइप से कवईता लिखा करता हु अक्सर।
मैं साइज़ोफ्रेनिक पोएट्री विधा में ज्यादा लिखा हूँ।
आपका 1 किल्लो आभार।
Comment by Mohammed Arif on April 13, 2017 at 5:25pm
आदरणीय बृजमोहन स्वामी जी आदाब, आपकी लंबी कविता पढ़ी । शुरू-शुरू में तो बांँधने का बहुत अच्छा प्रयास किया आपने लेकिन पता नहीं क्यों भावों के अलग-अलग जाल में कहाँ से कहाँ ले गईंं । शायद भावों के उतावलेपन में लंबी सैर पर ले गईं । पढ़ने में भी बड़ा मज़ा देती है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by बृजमोहन स्वामी 'बैरागी' on April 13, 2017 at 4:58pm
मान्यवर;Nilesh Shevgaonkar जी, मैने यहां वर्तमान कालिक परिदृश्य दर्शन के लिए "कलक्त्ता" लिखा है। कालीकट से तो उस वक़्त के भारत की झांकी पेश हो जाती जहां (लगभग) नार्मल सा था (आज की अपेक्षा) कालीकट और कलकत्ता में भौगोलिक के साथ साथ जो भावनाओं का जो अंतर है , उसे दर्शाने की कोशिश की है।

लेकिन आप की बात भी सही है आ० Nilesh Shevgaonkar जी।
धन्यवाद।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 13, 2017 at 3:36pm

आ. बैरागी जी,

कालीकट कर लें कलकत्ता को .... पूरे भारत की चौडाई के भूगोल का अंतर है दोनों में ..
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service