लिस्ट में से नाम और पता लेकर अमर ने खुद को विजट पर जाने के लिए तैयार कर लिया मोटर साइकल स्टार्ट कर वो सलेमपुर की तरफ निकल पड़ा।
अपना प्रोग्राम उसने ऐसे तैयार किया था कि कम से कम तीन कैंसर पीड़ित मैंबर के किसी फैमली मैंबर से वह मिल सके ।
चलने से पहले लिस्ट क्रम में इक नंबर पर महिंद्र कौर के घर वालों की तरफ से दिए गए नंबर पर उसने फौन लगाया ऐसा करना इस लिए भी जरूरी था कि कोई घर मिल जाए खास करके वह आदमी जो उस मरीज़ का ध्यान रख रहा हो।
फौन पे बात करते हुए अमर ने कहा, "तुम महिंद्र कौर जी के घर से बोल रहे हो।
“हाँ जी, दूसरी तरफ से आवाज़ आई”।
"मैं आप से मिलना चाहता हूँ, आप के घर में महिंद्र कौर नाम का कैंसर का मरीज़ ....." ।
"हाँ जी", उस ने बात को बीच में ही काटते हुए कहा, "अभी तक हमें सरकार की तरफ से पैसा नहीं मिला है"।
“मैं आप की तरफ से आप से मिलना चाहता हूँ”, अमर ने कहा ।
कुछ देर बाद अमर आवाज़ की बताई हुई जगह पर जा पहुंचा ।
वह पहले से ही वहां खड़ा था, तब अमर ने उसको अपने साथ चलने को कहा ।
"तब उस ने मेरे साथ चलने के स्थान पर बाजार में दुकान दिखा दी"।
"जी, ये जगना है जी, हम ने इलाज के लिए इनसे कर्जा लिया था ।
“हाँ जी, हम ने इन से ही इलाज़ के लिए पैसे उधार लिए थे,आप इनको सरकार की तरफ लाए पैसे दे दो,दस्तखत मैं कर दूंगा जी"।
"कौन से पैसे?" अमर ने कहा।
"जो सरकार कैंसर के मरीजों को दे रही"।
"सरकार पैसे नगद नहीं इलाज़ के रूप में दे रही है",अमर ने कहा।
अमर उसे बता रहा था कि "मैं तो ये पता करने के लिए आप से मिलना चाहता हूँ कि आप मरीज़ का ख्याल कैसे रख रहें?, क्या इस के लिए आपको कोई ट्रेनिंग ।
मिली है ? आप को मरीज़ की सेवा करते कैसे महसूस होता है?, आप को किसी तरह की कोई ट्रेनिंग तो नहीं चाहिए?, और अब मरीज़ की हालत कैसी है... ।
उसका चेहरा उतर गया और दुकानदार भी अमर की तरफ देखने लगा।
साहिब जी, इस की माँ तो वाहिगुरू को प्यारी हुई को तीन महीने हो गए हैं, अमर उस और दुकानदार की तरफ ध्यान से देखने लगा, और फिर अमर ने कहा हमारी लिस्ट में आपकी माता जी का नाम था, इस लिए ........ , बात बीच में ही रह गई।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
सरकार से मिलने वाली सहूलियतों के दुरुपयोग पर आपने बहुत अच्छी रचना गढ़ी है आदरणीय ,,,हार्दिक बधाई
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