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ग़ज़ल - मिरा गिरना किसी की है मसर्रत - ( गिरिराज )

1222    1222    122

है तर्कों की कहाँ.. हद जानता हूँ

मुबाहिस का मैं मक़्सद जानता हूँ

 

करें आकाश छूने के जो दावे

मैं उनका भी सही क़द जानता हूँ

 

बबूलों की कहानी क्या कहूँ मैं

पला बरगद में, बरगद जानता हूँ

 

बदलता है जहाँ, पल पल यहाँ क्यूँ

मै उस कारण को शायद जानता हूँ

 

पसीने पर जहाँ चर्चा हुआ कल
वो कमरा, ए सी, मसनद जानता हूँ

 

यक़ीनन कोशिशें नाकाम होंगीं

मै उनके तीरों की जद, जानता हूँ

 

मिरा गिरना किसी की है मसर्रत   

हुआ है कौन गद गद, जानता हूँ   

******************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित
यह गज़ल आ. समर भाई  की गज़ल की अधूरी ज़मीन पर कही है ... अधूरी इसलिये, क्योंकि इसमे काफिया मेरी है और रदीफ आ. समर भाई जी की ... आभार आ. समर भाई जी का ।

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Comment by Mahendra Kumar on May 15, 2017 at 11:47am

है तर्कों की कहाँ.. हद जानता हूँ, मुबाहिस का मैं मक़्सद जानता हूँ.

करें आकाश छूने के जो दावे, मैं उनका भी सही क़द जानता हूँ

वाह! बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय गिरिराज सर. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2017 at 8:40pm

आदरणीय अनुराग भाई , ग़ज़ल उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2017 at 8:39pm

आदरनीय गुरप्रीत भाई , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2017 at 8:37pm

आदरणीय आशुतोष भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार ।

Comment by Gurpreet Singh jammu on May 4, 2017 at 11:13am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,, बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने,,, हरेक शेअर अपनी कहानी खुद कह रहा है
है तर्कों की कहाँ.. हद जानता हूँ
मुबाहिस का मैं मक़्सद जानता हूँ

करें आकाश छूने के जो दावे
मैं उनका भी सही क़द जानता हूँ

बबूलों की कहानी क्या कहूँ मैं
पला बरगद में, बरगद जानता हूँ

बदलता है जहाँ, पल पल यहाँ क्यूँ
मै उस कारण को शायद जानता हूँ

लाजवाब

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 3, 2017 at 5:39pm

पसीने पर जहाँ चर्चा हुआ कल 
वो कमरा, ए सी, मसनद जानता हूँ...आदरणीय गिरिराज भाईसाब इस बेहतरीन ग़ज़ल के इस शेर के लिए बिशेस रूप से बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ   

Comment by Ravi Shukla on May 3, 2017 at 10:38am

आदरणीय नीलेश जी और आदरणीय गिरिराज भाई जी आपकी टिप्‍पणियों ने आश्‍वसत किया ओ बी ओ पर होने वाले अभ्‍यास को लेकर । ओ बी बो का ह्दय से आभार कि  शाइर को उसके कलाम से पहचान मिल रही है । आभार ओ बी ओ । ओ बी आे के माध्‍यम से हमने भी सीखा है इसके योगदान से उऋण तो नहीं हो सकते फिर भी हमारी जानकारी में कोई भी सीखने के लिये किसी मंच की जानकारी मांगता है तो उसे ओ बी ओ का रास्‍ता बता देते है । ओ बी ओ जिंदाबाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 2, 2017 at 12:11pm

आदरणीय मिलेश भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से अभार ।

// ब हम सब की ग़ज़लें   किसी और के रँग में नहीं होती,,, सब के   अपने अपने रँग उभरने लगे हैं... //  अगर ऐसा है तो बेहद खुशी की बात है मेरे लिये ...  आभार ये खुशी देने के लिये । मुझे लगता भी है कि . .. शायर शेर ऐसा कहे कि नीचे नाम भी न हो तो अंदाज़ा हो जाये ... ऐसा शेर  कौन कह सकता है .. ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 2, 2017 at 12:06pm

आदरनीय बृजेश भाई , हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 2, 2017 at 12:06pm

आदरणीय तस्दीक भाई , मै अपनी जल्दबाजी के लिये शर्मिन्दा हूँ ... मै ऐसा ही हूँ .. कभी कभी दुबारा भी नही पढता  गज़ल को । इस्लिये मुझसे बेतहाशा गलतियाँ होतीं है .. और एक भरोसा भी है ...कि ओ बीओ में तो आपरेशन होना ही है .. तब सुधार लेंगे .. इस्लिये भी लापरवाही हो जाती है ।
ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

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