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अपने घर लौटा तो कोई था न स्वागत के लिए

घर के दरवाजों पे ताले थे शरारत के लिए

 

जब कहा मन ने तो ‘मोबाइल’ उठाकर बात की,

अब प्रतीक्षा कौन करता है किसी ख़त के लिए?

 

मैं बरी होकर भी दोषी हूँ स्वयं की दृष्टि में,

कुछ अलग कानून है मन की अदालत के लिए

 

बाहुबल से भी अधिक धन-बल जरुरी हो गया

हाँ, तभी जाकर जुटा जन-बल सियासत के लिए

 

अब न वैसे दोस्त हैं, परिजन भी अब वैसे नहीं,

आप किसके पास जायेंगे शिकायत के लिए?

 

हानि अथवा लाभ का चश्मा चढ़ा लेने के बाद-

वो बहुत चिंता नहीं करती है ‘अस्मत’ के लिए

 

झोंपड़ी की छत मिली सौ कोशिशों के बाद ही

एक भी कोशिश न की आकाश की छत के लिए

 

ज़हीर कुरैशी

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 9, 2017 at 11:24am

कुछ कहने से पहले मैं एक बात साफ़ कर देना अपना फर्ज़ समझता हूँ कि हिंदी और उर्दू में से कोई भी मेरी मादरी जुबान नहीं है, मैं पंजाबी भाषी हूँ अत: किसी एक भाषा के प्रति पक्षपाती होने का प्रश्न ही नहीं उठता. लेकिन एक दिलचस्प बात है कि पंजाबी में लहर/कहर/बहर/शहर/नहर को उर्दू ही की तरह 21 में न केवल बाँधा जाता है बल्कि (लै’र/कै’र/बै’र/शै’र/नै’र) बोला भी जाता हैI

 

देखिए, इस बात के लिए अति-आग्रही होना कि हिंदी में भी उर्दू की तरह “त” और “तोय” में फर्क किया जाए बहुत सही नहीं हैI. क्योंकि iइनn दोनों के लिए हिंदी में केवल “त” ही उपलब्ध है. लेकिन अगर उर्दू की तरह हिंदी में (विशेषकर ग़ज़ल में) “त” और “तोय” का पालन कर भी लिया जाए तो मुझे नहीं लगता कि कोई आसमान टूट पड़ेगाI. ऐसा करना मूल भाषा/व्याकरण की आत्मा का सम्मान करना ही होगा.          

 

90 प्रतिशत पंजाबी गज़लकार स्व० दीपक जैतोई स्कूल से सम्बंधित है, दीपक साहिब पंजाबी ग़ज़ल के मीर कहे जाते हैं. “त” औत “तोय” की बात चली तो उनका एक किस्सा याद आया. अस्सी के दशक (संभवत: 1988 या 89) में एक मुलाकात के दौरान मेरी एक टूटी-फूटी पंजाबी ग़ज़ल पर इस्लाह करते हुए उन्होंने कहा था:

 

“काका! जे “तोते” नाळ “बोता” जोड़ेंगा ते “खोता” कुहायेंगा”

“छोकरे! अगर “तोते” के साथ “बोता” (ऊँट) का काफ़िया बांधा तो गधा कहलाएगाI”  

उन्होंने आगे ये भी बोला कि किसी यूपी/बिहार के उर्दू वाले के हाथ चढ़ गया तो इस गलती के लिए वो तेरे कान के नीचे बजा देगा. क्योंकि यह मेरे गुरु का आदेश है, अत: “त” और “तोय” का पालन मेरे लिए तो पत्थर की लकीर हैI उर्दू वाले तो इसका अक्षरश: पालन करते हैं, गुरु-पीर वाले पंजाबी गज़लकार भी इसको पूरी तरह मानते हैंI अब कोई इस बंधन को नहीं मानता है तो न मानेI बहुत से लोग तो बह्र की बंदिश से भी नाक-भौ सिकोड़ते देखे गए है, अत: पर एतराज़ करना या अति आग्रही होना मेरे ख्याल से महज़ गर्म तवे पर पानी की बूँदे डालने जैसा ही होगाI         


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 9, 2017 at 11:24am

कुछ कहने से पहले मैं एक बात साफ़ कर देना अपना फर्ज़ समझता हूँ कि हिंदी और उर्दू में से कोई भी मेरी मादरी जुबान नहीं है, मैं पंजाबी भाषी हूँ अत: किसी एक भाषा के प्रति पक्षपाती होने का प्रश्न ही नहीं उठता. लेकिन एक दिलचस्प बात है कि पंजाबी में लहर/कहर/बहर/शहर/नहर को उर्दू ही की तरह 21 में न केवल बाँधा जाता है बल्कि (लै’र/कै’र/बै’र/शै’र/नै’र) बोला भी जाता हैI

 

देखिए, इस बात के लिए अति-आग्रही होना कि हिंदी में भी उर्दू की तरह “त” और “तोय” में फर्क किया जाए बहुत सही नहीं हैI. क्योंकि iइनn दोनों के लिए हिंदी में केवल “त” ही उपलब्ध है. लेकिन अगर उर्दू की तरह हिंदी में (विशेषकर ग़ज़ल में) “त” और “तोय” का पालन कर भी लिया जाए तो मुझे नहीं लगता कि कोई आसमान टूट पड़ेगाI. ऐसा करना मूल भाषा/व्याकरण की आत्मा का सम्मान करना ही होगा.          

 

90 प्रतिशत पंजाबी गज़लकार स्व० दीपक जैतोई स्कूल से सम्बंधित है, दीपक साहिब पंजाबी ग़ज़ल के मीर कहे जाते हैं. “त” औत “तोय” की बात चली तो उनका एक किस्सा याद आया. अस्सी के दशक (संभवत: 1988 या 89) में एक मुलाकात के दौरान मेरी एक टूटी-फूटी पंजाबी ग़ज़ल पर इस्लाह करते हुए उन्होंने कहा था:

 

“काका! जे “तोते” नाळ “बोता” जोड़ेंगा ते “खोता” कुहायेंगा”

“छोकरे! अगर “तोते” के साथ “बोता” (ऊँट) का काफ़िया बांधा तो गधा कहलाएगाI”  

उन्होंने आगे ये भी बोला कि किसी यूपी/बिहार के उर्दू वाले के हाथ चढ़ गया तो इस गलती के लिए वो तेरे कान के नीचे बजा देगा. क्योंकि यह मेरे गुरु का आदेश है, अत: “त” और “तोय” का पालन मेरे लिए तो पत्थर की लकीर हैI उर्दू वाले तो इसका अक्षरश: पालन करते हैं, गुरु-पीर वाले पंजाबी गज़लकार भी इसको पूरी तरह मानते हैंI अब कोई इस बंधन को नहीं मानता है तो न मानेI बहुत से लोग तो बह्र की बंदिश से भी नाक-भौ सिकोड़ते देखे गए है, अत: पर एतराज़ करना या अति आग्रही होना मेरे ख्याल से महज़ गर्म तवे पर पानी की बूँदे डालने जैसा ही होगाI         


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 9, 2017 at 10:26am

//मोहतरम जनाब ज़हीर कुरैशी साहब आदाब,

मुझे हैरत हो रही है कि आप जैसे मुस्तनद शायर की ग़ज़ल पर किसी और शायर की सनद मांगी जा रही है.//

"किसी और शायर" को क्या यह हक नहीं है आ० राघव प्रियदर्शी जी? आ० ज़हीर कुरैशी साहिब मेरे एवं मंच के लिए बेहद सम्माननीय है, लेकिन हमारे यहाँ रचना देखी जाती है, रचनाकार नहींI मुझे नहीं लगता कि इस मुद्दे पर आ० ज़हीर कुरैशी साहिब को कोई आपत्ति होगी, इसलिए इस आपके तथाकथित सनद वाली बात का जवाब उन्हें ही देने दीजिये नI मैं नहीं समझता कि अपनी बात कहने के लिए उन्होंने किसी और को डेप्यूट किया होगाI सादरI      


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 9, 2017 at 10:26am

//मोहतरम जनाब ज़हीर कुरैशी साहब आदाब,

मुझे हैरत हो रही है कि आप जैसे मुस्तनद शायर की ग़ज़ल पर किसी और शायर की सनद मांगी जा रही है.//

"किसी और शायर" को क्या यह हक नहीं है आ० राघव प्रियदर्शी जी? आ० ज़हीर कुरैशी साहिब मेरे एवं मंच के लिए बेहद सम्माननीय है, लेकिन हमारे यहाँ रचना देखी जाती है, रचनाकार नहींI मुझे नहीं लगता कि इस मुद्दे पर आ० ज़हीर कुरैशी साहिब को कोई आपत्ति होगी, इसलिए इस आपके तथाकथित सनद वाली बात का जवाब उन्हें ही देने दीजिये नI मैं नहीं समझता कि अपनी बात कहने के लिए उन्होंने किसी और को डेप्यूट किया होगाI सादरI      


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 9, 2017 at 10:19am

//लेकिन माननीय की टिप्पणियों से तो ये लग रहा है कि सबसे बड़े ज्ञानी और सबसे बड़े रचनाकार वही है बाकी और किसी की कोई औकात ही नहीं है.//

आ० राघव प्रियदर्शी जी, कृपया एकदम से जजमेंटल न होइएI  

//मैं यही हूँ हर अनर्गल टिप्पणी पर टिप्पणी करने के लिए.//

इसका क्या अर्थ है? आप क्या यहाँ किसी से भिड़ने के इरादे से आये हैं? क्या अप ये धमकी दे रहे हैं? आदरणीय, साहित्यिक मंच से ज्यादा ओबीओ एक परिवार हैI इसमें एक परिवारजन की ही तरह रहें, यह मेरी आपसे गुज़ारिश हैI और क्या बेहतर ये न होगा कि मोहतरम जनाब ज़हीर कुरैशी साहिब, जिनकी ग़ज़ल पर "किन्तु" किया गया है वे स्वयं आकर बात साफ़ करें? उनकी अनुपस्थिति में ऐसी बहस का क्या लाभ? मेरी अन्य साथिओं से भी हाथ जोड़ कर प्रार्थना है कि बहस को शालीनता/तर्क के दायरे में ही महदूद रखेंI 

Comment by ASHISH ANCHINHAR on May 8, 2017 at 10:18pm

तमाम बहस से परे मेरा सवाल अभी तक वहीं खड़ा है कि "ते" वाले "त" और "तोय" वाले "त" को देवनागरी में कैसे लिखेगें। सिर्फ जिज्ञासा (मैं किसी भी पक्ष का दावेदार नहीं हूँ)।

Comment by Ravi Shukla on May 8, 2017 at 10:49am

आदरणीय जहीर साहब फिर से आपकी गजल पर उपस्थित हैं। अभी तक तो भाषा पर ही बात हो रही है आपकी गजल पर चर्चा तो बाकी है जिससे कि हम कुछ सीख सके । अब तक की चर्चा से कई पहलू पाठकों को नजर आ रहे है इस बहस में एक निवेदन आपसे है मंच पर हमारे जैसे पाठको की जानकारी के लिये गजल से पहले उसकी बहर ( मात्रिक या अरकान की सूरत ) लिख देने की भी पंरपरा है जिससे आसानी हो जाती है । आशा है आप हमारी इस सुविधा को आगामी गजलों में बहाल करेंगे ।मंच पर आपकी उपस्थ्‍िति से उत्‍साहित है सब , हम भी । सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2017 at 10:48pm

आ. मंच,

मुझे लगता है कि मंच के कई सम्मानित सदस्य ज़बान और लिपि का अंतर नहीं समझते है और इसलिए लिपि को ही भाषा मान लेते हैं जिसके चलते देवनागरी में लिखी कोई भी बात उनके लिये हिंदी होती है.....

अगर किसी बात को यूँ लिखा जाय कि ----
MAIN TUM SE BAHUT PYAAR KARTA HUN ...  तो ये इन महानुभावों के कबीले में अंग्रेज़ी माना जाएगा क्या?
इसी तरह उर्दू . फ़ारसी/ अरबी स्क्रिप्ट न पढ़ सकने वाले मुझ जैसे लोगों के लिये अगर आज ग़ालिब अपनी ग़ज़ल देवनागरी में पोस्ट कर दे तो ये दीवाने उसे भी हिंदी ग़ज़ल बता देंगे ...
पंजाबी सरहद के दोनों तरफ़ बोली जाती है   लेकिन इस तरफ गुरुमुखी में लिखी जाती है और उधर उर्दू स्क्रिप्ट में .....तो क्या ये लोग उधर की पंजाबी ग़ज़ल को उर्दू ग़ज़ल मान लेंगे?
कई महानुभाव , जिनका मंच पर योगदान शून्य है, पता नहीं किस गरज से सही को ग़लत साबित करने का वकालतनामा ले कर आ जाते हैं...
जिस ग़ज़ल में 8 में से 7 क़वाफ़ी ख़ालिस urdu के हों  और 70  प्रतिशत शब्द भी urdu के हों ,,, उसे सिर्फ स्क्रिप्ट के आधार पर हिंदी ग़ज़ल कहना निरर्थक है.
व्हाट्स एप्प की स्क्रिप्ट बहुतायत रोमन होती  है जिस में लोग अपनी अपनी भाषा में बात लिखते है लेकिन हमारे दीवानों की नज़र कल उठ के उसे इंग्लिश न कह दे ..यही डर सताता रहता है मुझे ...
फ्रेंच और जर्मन में अक्सर स्क्रिप्ट रोमन होती है तो क्या वो ज़बान अंग्रेजी हो जाती है??
कमाल है कि इस तथाकथित हिंदी प्रेम ने न तो हिंदी का भला किया है और न urdu   का.. उलटे एक बहुत बड़े खित्ते में बोली जाने वाली अपनी ज़बान को पराया कर दिया है .....
इन लोगों की कुण्ठा ये है कि ये जिस प्रेमचन्द को अपना शेक्स्पीयर कहते हैं वो भी धनपतराय के नाम से उर्दू ही में लिखते थे.... इन्ही के जैसे कुण्ठित लोगों के चलते पंच-परमेश्वर जैसी कालजयी कहानी में कुछ राज्यों की पाठ्य पुस्तकों में अब खाला को मौसी लिखा जाने का पाप किया जा रहा है ...
मंच पर सिर्फ़ बे-सरपैर के कमेंट करने को उपस्थित होने वाले ये सर्टिफिकेट न दें कि मंच की सभी ग़ज़लें हिंदी हैं या तमिल हैं. .... वो पहले कुछ सार्थक पेश करें ....
इन्हें कतिपय शब्दों को तोड़-मरोड़ के लेने में इतनी ही दिलचस्पी है तो पहले उसी विकृत रूप में शब्द को हिंदी शब्दकोष में शामिल करवायें ताकि उस शब्द का यज्ञोपवीत हो सके.....
अपने बच्चों से अंग्रेजी की स्पेलिंग रटवाने वाले किसी अन्य भाषा के शब्दों की स्पेलिंग न बिगाड़ें तो बेहतर होगा.  
ये नए सीखने वालों पर निर्भर करता है कि वो ग़ज़ल के प्रति कितने गंभीर हैं?? यदि वो अपने लिखे को गंभीरता से लेकर कुछ सीखना चाहते हैं तो उन्हें मंच पर दिन –रात एक कर के सही जानकारी देने वालों को सुनना –समझना चाहिए....
फ्लाइंग विजिट पर आने वाले आप को किसी दिन किसी मुशायरे में हँसी का पात्र बनवा सकते हैं...
सीखने समझने से आप की रचना ही बेहतर होगी.... कुतर्क और अड़ियल रवैया सत्य के मार्ग में बाधक होता है..शतुरमुर्ग की प्रवृत्ति से बचना चाहिए ....
मज़े की बात ये है कि रचनाकार अबतक कोई टिप्पणी करने या defend करने नहीं आये हैं लेकिन फ्लाइंग विसिटर्स हलकान हैं... उन को अचरज हो सकता है कि फ़ैसला सिर्फ नाम पढ़कर क्यूँ नहीं लिया गया ?? क्यूँ कलाम में नुक्ताचीनी कर दी गयी?? असल में ये मंच है ही ऐसा... यहाँ कोई भी बड़ा-छोटा नहीं है .... सब को अपनी बात कहने का अधिकार है ...   
सहमत होना न होना रचनाकार का विषय है ..जिसे वो अपने तरीक़े से defend कर सकता है ...
.
इस सीरीज में ये मेरी अंतिम टिप्पणी है.... यदि संभव हुआ तो कल ग़ज़ल के अन्य पहलुओं पर टिप्पणी करने का प्रयास करूँगा
सादर 

Comment by ASHISH ANCHINHAR on May 6, 2017 at 11:17pm

जानना चाहता हूँ कि "ते" वाले "त" और "तोय" वाले "त" को देवनागरी में कैसे लिखेगें। सिर्फ जिज्ञासा (मैं किसी भी पक्ष का दावेदार नहीं हूँ)।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2017 at 5:19pm

आ. ज़हीर साहब....
मैं फिलहाल आप की ग़ज़ल पर टिप्पणी कर सकने की स्थिति में नहीं हूँ अत: अभी केवल  मंच पर आप की उपस्थिति पर मंच को बधाई प्रेषित करता हूँ...
आ. अनुराग जी ने तोए को फ़ारसी का अन्धानुकरण बताया है जिससे  लगता है  कि अनुराग जी उर्दू के प्रति पूर्वाग्रही हैं. 
किस भाषा में कौनसा शब्द कैसे लिखा जाय ये कोई अनुराग या निलेश   तय नहीं कर सकता.... ये तय होता है डिक्शनरी से जो सदियों की शाब्दिक जुगाली का निचोड़ होती है.
अनुराग जी पहले हिंदी से दो श और ष की उपयोगिता बतायें.... त्र   के स्वतंत्र अक्षर  के रूप में होने का मतलब   बतायें  और ये भी बतायें  कि जब ज्ञ का उच्चारण ग्य की तरह  ही करना है तो क्यूँ न ज्ञान को ग्यान लिखा जाय? क्यूँ न क्ष को क्श लिखा जाय ...क्यूँ न हिंदी वर्णमाला से  ड. ञ  जैसे अक्षर हटा दिए जायें? क्यूँ श्र को श के नीचे रफार दे के लिखा जाये??
.
ऋषि को रिशि भी क्यूँ न लिखा जाय?
क्या ये मृत प्राय: संस्कृत का अन्धानुकरण नहीं है? 
.
ऐसी ही शिकायत मुझे उर्दू  वालों से  भी है कि क्यूँ  मन्दिर (मंदर) को  पत्थर  के साथ काफ़िये में लिया जाय ...क्यूँ कोई ग़ालिब ब्राह्मण को बिरहमन पढ़े...... क्यूँ दर्पण को दरपन किया जाय ....
.
क्यूँ लोकमान्य टिळक को हिंदी वाले तिलक कर दें >>>> क्यूँ तेंडुळकर को तेंदुलकर कहा जाय ..क्यूँ द्रविड़ को दर्वीड पुकारा जाय>>>
या यूँ कि सब ऐसे ही बोलते हैं इसलिए इनका नाम ही बदल दिया जाय ...ये तो समझदारी नहीं हुई ..
मुझे डर है कि  यही वृत्ति कहीं आप को कल कॉलेज  को  kalej  या KOLej   स्पेल करने को बाध्य न कर दे ... क्यूँ कि हिंदी में कॉ का स्वर  किसी भी अक्षर/ मात्रा  से नहीं इंगित किया जा सकता ..
 किसी भी भाषा या भाशा पर ऊँगली उठाने से पहले ये बात समझ लेनी चाहिए कि   भाषा हज़ारों वर्षों में उन्नत   होती है और किसी अन्य  भाषा के शब्दों को लिपिबद्ध करने के लिये उस भाषा की   मर्यादा को पालना ज़रूरी है ...चूँकि आप की ज़ुबान   की गोलाई आप को  ख़त को खत पढने पर मज़बूर   करती है इसका  मतलब यह नहीं है कि वो शब्द लिखा और पढ़ा उसी तरीक़े से जाय ...
आप के -मेरे रुदन से शब्द नहीं बदलने वाले ..... हम उन्हें अक्षर कहते   हैं..... अक्षर.... जिनका क्षरण नहीं होता ...
और ग़ज़ल चूँकि काफ़िये के गिर्द ही बुनी जाती है अत: काफ़िया चुनने  में ये सावधानी अत्यंत ज़रूरी है.... ये अभ्यास से  होगा 
अभ्यास में शॉर्टकट नहीं होते 
और जिसे उर्दू से या हिन्दवी से कष्ट हो वो बिना फ़ारसी / अरबी अथवा हिन्दवी शब्द लिये शौक़ से ग़ज़ल कहे ....उसे कौन   रोकता है.
अरबी/ फ़ारसी शब्दों को लेना भी है ..और ग़लत भी लेना है...ये निरी हठधर्मिता है.
एक पुरानी कहावत याद आती है.....
हाथ कंगन को आरसी क्या.... पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या?

सादर 

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