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नजर से दूर रहकर भी जो दिल के पास रहती है
कभी नींदें चुराती है कभी ख्वाबों में मिलती है.
चमकना चाँद सा उसका मेरी हर बात पर हँसना
कहीं फूलों की नगरी में कोई वीणा सी बजती है.
ये भोलापन हमारा है कि है जादूगरी उसकी
वफ़ा फितरत नहीं जिसकी वही दिलदार लगती है.
कभी मैं भूल जाऊँगा उसे कह तो दिया लेकिन
जो दिल पर हाथ रक्खा तो वही धड़कन सी लगती है.
तुम्हारा जो बचा था पास मेरे ले लिया तुमने
तुम्हारी प्रीत की खुश्बू अभी भी मुझमे बसती है.
कभी जो मुड़ के देखोगे मुझे तो जान जाओगे
कि रिश्ता टूट जाने में कहीं तेरी भी गलती है.
नीरज कुमार नीर
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
हार्दिक आभार आ. लक्ष्मण धामी जी
बहुत खूब
आपका हार्दिक आभार आदरणीय रवि शुक्ल जी ...
आदरण्ीय नीरज जी बहुत सुंदर भाव आपने गजल में लिये है बधाई गजल के लिये काफिया पर जानकारी ले कर आप इसे सुधार सकते है । बहुत बहुत बधाई इस गजल के लिये
शुक्रिया आ. सतविन्द्र कुमार जी ....
शुक्रिया आ. बसंत कुमार शर्मा जी
शुक्रिया आ. बसंत कुमार शर्मा जी
मनोहारी ग़ज़ल दिल से दिल की बात करती हुई
आपका आभार आ . गिरिराज भंडारी जी ..
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