स्मृति पृष्ठ ...
रजनी के
श्यामल कपोलों पर
मेघों की बूंदों ने
व्यथित यादों के
पृष्ठों पर जैसे
सान्तवना का
आभासीय श्रृंगार कर डाला
दृग कलशों से
सजल वेदना
प्रीत की
पराकाष्ठा को
चेहरे की लकीरों में
शोभित करती रही
प्राण और देह में
जीवन संघर्ष चलता रहा
किसी को विस्मरण करने के
सभी उपचार
रेत की भित्ति से
ढह गए
थके नयन
आशा क्षणों की
गहन कंदराओं में
प्रतीक्षा की विफलता के प्रहारों को
सह न सके
रक्ताभ अधरों पर
तरल प्रतीक्षा क्षण
पल भर रुके
फिर
बिन प्रतीक्षा
रजनी के
तारांचल पर गिर पड़े
प्रभात ने
उन क्षणों से
अपनी मांग सजा ली
रजनी को अपने में
समाहित कर लिया
चिर प्रतीक्षित क्षण
प्रभात बन
फिर से
एक नया
स्मृति पृष्ठ बना गए
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय narendrasinh chauhan जी रचना के भावों को मान देने का हार्दिक आभार
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना को अपना कीमती समय देने और उसकी प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक आभार। आपके अमूल्य सुझाव का शुक्रिया लेकिन इसमें मुझे कोई विशेष भाव परिवर्तन नज़र नहीं आता हालांकि सुझाव सुंदर है जो भविष्य के सृजन में काम आएगा। हार्दिक आभार । नेट व्यवधान से आभार व्यक्त करने में विलम्ब हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ।
आदरणीया कल्पना भट्ट जी रचना के भावों को मान देने का शुक्रिया। नेट व्यवधान से आभार व्यक्त करने में विलम्ब हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ।
खूब सुन्दर रचना
आदरणीय सुशील भाई , खूबसूरत भाव पूर्ण कविता के लिये बधाइयाँ । नीचे सम्भावित त्रुटि पर ध्यान दिलाना चाहता हूँ , मेरी सलाह सही लगे तो सुधार कर लीजियेगा ।
सान्तवना का
आभासीय श्रृंगार कर डाला
या
सांत्वना का
आभासी श्रृंगार कर डाला
रेत की भित्ति से
ढह गए
रेत की भित्ति सी
ढह गयी
आदरणीय आशुतोष जी प्रस्तुति को अपने स्नेह से सिंचित करने का हार्दिक आभार।
आदरणीय मो. आरिफ साहिब प्रस्तुति के भावों को मान देने का हार्दिक आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब आपकी सदा की तरह सृजन का हौसला बढ़ाती प्रशंसा का हार्दिक आभार।
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