For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल....रूप लम्हों में बदलती ज़िन्दगी का क्या करूँ

2122 2122 2122 212
रूप लम्हों में बदलती ज़िन्दगी का क्या करूँ
हौसलों का क्या करूँ चीने जबीं का क्या करूँ

रंग लाती ही नहीं अश्कों दफ़न की कोशिशें
आँख में आती नज़र रंजो ग़मी का क्या करूँ

​​रो रही है रात गुमसुम चाँद तारे मौन है
आग अंतस में लगाये चाँदनी का क्या करूँ

ओढ़ चादर कोहरे की कपकपाते होंसले
हर कदम पे थरथराते आदमी का क्या करूँ

हों इरादे आसमां तो जुगनुओं से रोशनी
आप घर खुद ही जलाये रोशनी का क्या करूँ

गुनगुनायें गीत कैसे औ कहें कैसे ग़ज़ल
जो समझ आती नहीं तो शायरी का क्या करूँ

चीने जबीं-माथे की सलवट
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 907

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 16, 2017 at 4:38pm
आदरणीय अनुराग जी आपने उचित ही कहा है..मैं काफी समय से कोई अच्छी किताब की खोज में हूँ..लेकिन मिल नहीं रही..क्या आप बता सकते हैं देल्ही में मद्दाह साहब की किताब कहाँ मिल सकती है..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 16, 2017 at 4:34pm
जी आदरणीय नीलेश जी कोशिश कर रहा हूँ..कुछ अच्छा कर सकूँ...सादर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 16, 2017 at 8:45am

आ. बृजेश जी... 
अच्छी कोशिश हुई है..
समर सर के बताये अनुसार रचना में सुधार करने प्रयास करें..
सादर 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 15, 2017 at 8:57pm
रचना पटल पे हार्दिक अभिनन्दन है आदरणीय सतविंद्र जी..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 15, 2017 at 8:56pm
आदरणीय समर सर हौसलाफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया..मतले के सानी में कमी तो है गी और बीं में काफी अंतर है..दफ़्न का सही रूप बताने के लिए एक फिर शुक्रिया अदा करता हूँ..सुधार की कोशिश जारी है..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 15, 2017 at 8:52pm
आदरणीय शर्मा जी रचना को ह्रदय से महसूस करने के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन वंदन..सादर
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 15, 2017 at 6:41pm
हार्दिक बधाई आदरणीयbrijesh ब्रज जी,इस उम्दाgjl ke लिए
Comment by Samar kabeer on May 15, 2017 at 6:26pm
जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मतले के सानी मिसरे में क़ाफ़िया दोष है देखियेगा ।
दूसरे शैर के ऊला में 'दफन'ग़लत है,सही शब्द है "दफ़्न" देखियेगा ।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 15, 2017 at 10:40am

बहुत बढ़िया शेर , आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी 

रो रही है रात गुमसुम चाँद तारे मौन है
आग अंतस में लगाये चाँदनी का क्या करूँ

ओढ़ चादर कोहरे की कपकपाते होंसले
हर कदम पे थरथराते आदमी का क्या करूँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service