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मेरी मदहोशियाँ भी ले जाना
मेरी हुश्यारियाँ भी ले जाना
इक ख़ला रूह को अता कर के
आज तन्हाइयाँ भी ले जाना
जाने किस किस से तेरी अनबन हो
थोड़ी खामोशियाँ भी ले जाना
दिल को दुश्वारियाँ सुहायें गर
मुझसे तब्दीलियाँ भी ले जाना
कामयाबी न सर पे चढ़ जाये
मेरी नाकामामियाँ भी ले जाना
राहें यादों की रोक लूँ पहले
फिर तेरी चिठ्ठियाँ भी ले जाना
बे असर हो गयीं थीं आ मुझ तक
वो तेरी फबतियाँ भी ले जाना
मैं कुआँ सा हूँ, तू समन्दर है
तू..., तेरी किश्तियाँ भी ले जाना
ये न हो इल्म दे अकड़ तुझको
ख़ुद की कुछ गलतियाँ भी ले जाना
सादा दिल बज़्म में नहीं टिकता
यार..., ऐयारियाँ भी ले जाना
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मौलिक एवँ अप्राशित
Comment
बहुत बढ़िया ग़ज़ल है आदरणीय गिरिराज सर. हार्दिक बधाई प्रेषित है. सादर.
उम्दा ग़ज़ल कही है भाई | हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी।
आदरनीय सुरेन्द्र भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरनीय नादिर खान भाई , सुखन नवाज़ी और हौसला अफज़ाई के लिये आपका बहुत शुक्रिया
मेरी मदहोशियाँ भी ले जाना
मेरी हुश्यारियाँ भी ले जाना
इक ख़ला रूह को अता कर के
आज तन्हाइयाँ भी ले जाना .... आदरणीय गिरिराज जी उम्दा गजल हुयी है आशआर मे रवानगी कमाल की है |
आदरनीय नवीन भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय बड़े भाई विजय जी , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय अनुराग भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।
आदरणीय नीलेश भाई , आपका आभार ।
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