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एक हांडी दो पेट(लघुकथा)
हाई स्कूल के बाद, उसके आगे न पढ़ने के ऐलान करने पर माँ ने जोर देते हुए कहा,"बेटा!बिना पढ़ाई के आज कोई इज्जत नहीं है।तुझे यह कितनी बार समझाऊँ?"
पिता ने जोड़ा,"ठीक कह रही है तेरी माँ।"
वह झल्ला कर बोली,"माँ,बापू मेरे बस का नहीं है पढ़ना।ज्यादा धक्का ना करो।क्या कर लूँगी पढ़ के मैं?"
पिता बोले,"पढ़-लिख जावेगी तो अपने पैरों पर खड़ी हो सकेगी।किसी की तरफ देखना न पड़ेगा।जिंदगी में तेरे काम आवेगी पढ़ाई।"
"अच्छा!",उसने मुँह बनाया।
"बेटा!मैं ना पढ़ पायी मने इस बात का मलाल है।बड़ी समझायी थी मेरे बाप-भाइयाँ ने।मैं चाहूँ हूँ कि मेरी बेटी मेरी तरह ना पछतावे।"
"मतलब मैं ना पढूँगी तो पछताऊँगी?",उसने फिर चुटकी ली।
फिर बदहाल-सी हालत में पोछा लगा रही अपनी शिक्षित भाभी की तरफ़ देखा और बोली,"अरी माँ!जरूरी तो नहीं कोई मने मेरे पैरों पर खड़ा होने देगा,आगे क्या पता लगाम किन हाथों में हो? बढ़िया तरह पढ़-लिखकर भी पछताना ही पड़ेगा.."
माँ और पिता भी बहू की तरफ देखने लगे।
वह झट से बोली,"इससे खरा तो है कि मैं भी तेरी तरह बिना पढ़े ही पछता लूँगी।"
दोनों चुप थे,और दोनों के चेहरे पर पछतावा नजर आ रहा था।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 19, 2017 at 7:05pm
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ भाई जी,प्रयास पर उपस्थित होकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत-बहुत हार्दिक आभार
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 19, 2017 at 6:59pm
आदरणीया राजेश दीदी,प्रयास को प्रोत्साहित करने के लिए सादर हार्दिक आभार!निस्संदेह आदरणीय रवि प्रभाकर सर के सुझाव मेरे लिए गुरूवाक्य हैं,उनके द्वारा सुझायी बातों को मैं ताउम्र ध्यान रखूँगा!
Comment by नाथ सोनांचली on May 19, 2017 at 3:50am
आद0 सतविंदर भाई जी सादर अभिवादन, उम्दा लघुकथा के लिए बधाई स्वीकारें। सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2017 at 12:51pm

लघु कथा शीर्षक से पूर्णतः  न्याय कर रही है बहुत खूब हार्दिक बधाई आपको आद० सतविन्द्र भैया | आद० रवि प्रभाकर जी की बात काबिले गौर है |

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 16, 2017 at 10:39pm
आदरणीय रवि प्रभाकर सर,आपकी प्रोत्साहक टिप्पणी के लिए सादर हार्दिक आभार।आपकी समीक्षा मुग्धकारी है और मार्गदर्शन सदैव वांछित।आप द्वारा सुझाई बातें भविष्य में याद रखूँगा और इस प्रकार की त्रुटि न हो इसका ध्यान रखूँगा
Comment by Ravi Prabhakar on May 16, 2017 at 9:24pm

प्रिय भाई सतविन्‍द्र जी, प्रस्‍तुत लघुकथा का शीर्षक अत्‍यंत उपयुक्‍त व प्रभावशाली है। लघुकथा का कथानक कथनी-करनी में अंतर के पुराने ढर्रे पर आधारित है परन्‍तु सधे तरीके से लिखने की वजह से लघुकथा प्रभावित करती है। आपका ध्‍यान भाषा की तरफ आकृष्‍ट करना चाहूंगा: भाषा भाव सम्‍प्रेषण और अनुभूति की अभिव्‍यक्‍ित का एक सशक्‍त माध्‍यम है। ग्रामीण (आंचलिक) पृष्‍ठभूमि पर आधारित लघुकथा में ग्रामीण परिवेश के अनुकूल भाषा का प्रयोग वहां के जीवन चित्रण को सजीव रूप प्रदान करता है। आपकी लघुकथा में /माँ ने जोर देते हुए कहा,"बेटा!बिना पढ़ाई के आज कोई इज्जत नहीं है।तुझे यह कितनी बार समझाऊँ?"/  और /"बेटा!मैं ना पढ़ पायी मने इस बात का मलाल है।बड़ी समझायी थी मेरे बाप-भाइयाँ ने।मैं चाहूँ हूँ कि मेरी बेटी मेरी तरह ना पछतावे।"/ इन दो संवादों में मां की भाषा में कही तो मां सीधे लहजे से बात करती है और कहीं 'मने' शब्‍द यानि आंचलिक भाषा इस्‍तेमाल कर रही है । बेटी के संवादों /"अरी माँ!जरूरी तो नहीं कोई मने मेरे पैरों पर खड़ा होने देगा,आगे क्या पता लगाम किन हाथों में हो? बढ़िया तरह पढ़-लिखकर भी पछताना ही पड़ेगा.."
माँ और पिता भी बहू की तरफ देखने लगे।
वह झट से बोली,"इससे खरा तो है कि मैं भी तेरी तरह बिना पढ़े ही पछता लूँगी।"/ में भी यह कमी महसूस हो रही है। बेटी 'मने' और 'खरा' जैसे आंचलिक शब्‍दों का प्रयोग भी कर रही है।  एक ही संवाद में आंचलिक और सपाट भाषा का प्रयोग सहज नहीं लग रहा। बेटी के संदर्भ में तो चलो ये समझ सकते हैं कि पढ़ी लिखी बेटी बीच बीच में ही ऐसे शब्‍दों का प्रयोग करती होगी परन्‍तु माता व पिता के संदर्भ में भाषा बनावटी लग रही है उसमें सहजता नहीं है। उम्‍मीद है आप सहमत होंगे और भविष्‍य में भाषा के प्रति अतिरिक्‍त सर्तकता बरतेंगे । सादर

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 16, 2017 at 2:42pm
आदरणीय विजय निकोरे सर,उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया,सादर
Comment by vijay nikore on May 16, 2017 at 1:50pm

कघु कथा बहुत अच्छी लिखी है। हार्दिक बधाई, आदरणीय सतविन्द्र जी।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 16, 2017 at 10:59am
पुनः समय देने के लिए सादर हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी!
Comment by Mahendra Kumar on May 16, 2017 at 8:01am

एक हांडी दो पेट = दोहरे मापदंड. इस हरियाणवी कहावत से परिचय कराने का बहुत-बहुत शुक्रिया आ. सतविन्द्र भाई जी. पुनः बधाई. सादर. 

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