22 11 22 11 22 11 22
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मैं पहले-पहल शौक़ से लाया गया दिल में
फ़िर नाज़ से कुछ रोज़ बसाया गया दिल में.
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वो ख़त तो बहुत बाद में शोलों का हुआ था,
तिल तिल के उसे पहले जलाया गया दिल में.
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हालाँकि मुहब्बत वो मुकम्मल न हो पाई
शिद्दत से बहुत जिस को निभाया गया दिल में.
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अंजाम पता है हमें कुछ और है फिर भी,
हीरो को हिरोइन से मिलाया गया दिल में.
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हम सच में तेरी राह में कलियाँ क्या बिछाते
पलकों को मगर सच में बिछाया गया दिल में.
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नीलेश भाई , गज़ल अच्छी हुई है ... बधाइयाँ स्वीकार करें .. पर हाँ , वैसी नही हो पायी जैसी आप कहते हैं वहीं ये बात भी सही है कि सभी उँगलियाँ एक सी नही होतीं ।
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