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तरही गजल (मुहब्बत में अगर कोई कभी बीमार हो जाये)

बह्र 1222 1222 1222 1222

कहीं जो खेत में कमबख्त खरपतवार हो जाये
जमीं हो लाख उपजाऊ मग़र बेकार हो जाये

ज़रा सच से अगर जो रूबरू अखबार हो जाये
जगे जनता वतन की और सज़ग सरकार हो जाये

कोई घर मे अगर जयचंद सा गद्दार हो जाये
इरादे हों भले मजबूत फिर भी हार हो जाये

दवा भी बेअसर हो वैद्य भी लाचार हो जाये
मुहब्बत में अगर कोई कभी बीमार हो जाये

करें सहयोग माँ के साथ जो सब घर के कामों में
तो फिर उसके लिये भी एक दिन इतवार हो जाये

किसी के हाल पर हँसने से पहले सोच ले नादाँ
कहीं तू ख़ुद न इन हालात से दो चार हो जाये

जमीं और आसमाँ को बाँटने वालों जरा सोचों
न हो ऐसा खड़ी हर इक जगह दीवार हो जाये

छिपाते हैं अबस ही लोग बालों की सफ़ेदी को
*बुरा क्या है हकीकत का अगर इज़हार हो जाए*

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Gajendra shrotriya on May 23, 2017 at 6:18pm
आदरणीय सुरेन्द्रजी कुछ सुझाव और प्रस्तुत है।
हकीकत का नुमाइंदा अगर अखबार हो जाये
जगे आवाम सारी होश में सरकार हो जाये
दवा नाकाम चारागर बड़ा लाचार हो जाये
मुहब्बत के असर से गर कोई बीमार हो जाये
Comment by Samar kabeer on May 23, 2017 at 6:12pm
जनाब गजेंद्र जी आदाब,आपके सुझाये मिसरों पर ज़रा ग़ौर कीजिये:-

'हक़ीक़त कहने वाले देश के अख़बार हो जाये
जगे आवाम सारी होश में सरकार हो जाये'
इसमें 'देश के'शब्द में बहुवचन है,और रदीफ़ 'जाये'है, आपके मिसरे में रदीफ़ 'जाएँ'हो रही है,और सानी मिसरे में 'आवाम'ग़लत शब्द है,सही शब्द है "अवाम" ।

ये मिसरा भी देखिये :-

'दवा नाकाम चारागर सभी नाकाम हो जाये'
इस मिसरे में भी 'सभी'शब्द बहुवचन के लिये है और रदीफ़ 'जाये' एक वचन में है ,इस लिये बहतर यही है कि बिला वजह किसी को मश्विरा देने से परहेज़ करना चाहिये, या फिर सुझाव ऐसा हो कि शैर का हुस्न बढ़ जाये,आपके सुझाव से तो अच्छे ख़ासे अशआर का कबाड़ा हो गया है ।
Comment by नाथ सोनांचली on May 23, 2017 at 5:55pm
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन, आपके हौसला अफजाई के लिए कोटिश आभार
Comment by नाथ सोनांचली on May 23, 2017 at 5:50pm
आद0 गजेन्द्र जी सादर अभिवादन। हौसला अफजाई के लिए हृदय से आभार।


आपने जो सुधार किया है उसके लिए तहेदिल से शुक्रिया। सीखने के निमित्त कुछ पूछ रहा हूँ, आप अन्यथा नही लेंगे, सादर।
हकीकत कहने वाले देश के अखबार हो जाये
जगे आवाम सारी होश में सरकार हो जाये

इस संसोधित शैर में ऊला मिसरा में 'कहने वाले' लिखने से बहुबचन हो गया तो फिर हो जाये के बजाय 'हो जायें' करना पड़ेगा जिससे रदीफ़ गड़बड़ हो जाएगा


दवा नाकाम चारागर सभी लाचार हो जाये
मुहब्बत के असर से गर कोई बीमार हो जाये

इस संसोधित शैर में भी ऊला मिसरा में सभी बहुबचन है। देखिएगा सादर
Comment by नाथ सोनांचली on May 23, 2017 at 5:50pm
आद0 गजेन्द्र जी सादर अभिवादन। हौसला अफजाई के लिए हृदय से आभार।


आपने जो सुधार किया है उसके लिए तहेदिल से शुक्रिया। सीखने के निमित्त कुछ पूछ रहा हूँ, आप अन्यथा नही लेंगे, सादर।
हकीकत कहने वाले देश के अखबार हो जाये
जगे आवाम सारी होश में सरकार हो जाये

इस संसोधित शैर में ऊला मिसरा में 'कहने वाले' लिखने से बहुबचन हो गया तो फिर हो जाये के बजाय 'हो जायें' करना पड़ेगा जिससे रदीफ़ गड़बड़ हो जाएगा


दवा नाकाम चारागर सभी लाचार हो जाये
मुहब्बत के असर से गर कोई बीमार हो जाये

इस संसोधित शैर में भी ऊला मिसरा में सभी बहुबचन है। देखिएगा सादर
Comment by Sushil Sarna on May 23, 2017 at 5:43pm

दवा भी बेअसर हो वैद्य भी लाचार हो जाये
मुहब्बत में अगर कोई कभी बीमार हो जाये

बहुत सुंदर अशआर है आपकी इस ग़ज़ल के .... हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं।

Comment by Gajendra shrotriya on May 23, 2017 at 5:38pm
बहुत अच्छी गज़ल कही है आपने आदरणीय। सभी शेर काबिलेतारीफ है।
कुछ सुझाव गज़ल की बेहतरी के लिए यदि आप उचित समझे।
संशोधित शेर
किसी के खेत में कमबख्त खरपतवार हो जाये
जमीं हो लाख उपजाऊँ मग़र बेकार हो जाये

हकीकत कहने वाले देश के अखबार हो जाये
जगे आवाम सारी होश में सरकार हो जाये

अगर घर मे कोई जयचंद सा गद्दार हो जाये
इरादे हों भले मजबूत फिर भी हार हो जाये

दवा नाकाम चारागर सभी लाचार हो जाये
मुहब्बत के असर से गर कोई बीमार हो जाये

जरा सा हाथ बाँटे गर सभी हम माँ के कामों में
तो फिर उसके लिये भी एक दिन इतवार हो जाये

कृपया अन्यथा न लें।शुभकामनाएँ।सादर।
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 22, 2017 at 6:21pm
जी बिल्कुल सही बात है आदरणीय
Comment by नाथ सोनांचली on May 22, 2017 at 3:07pm
आद0 गुरप्रीत भाई साहब सादर अभिवादन। आपकी गहराई से गजल में शिरकत करने और हौसला अफजाई के लिए आभार.... और भी गुणीजनों के सुझावों का इंतजार है, बाद में जो यथोचित होंगा, अवश्य सुधार करूँगा। सादर
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 22, 2017 at 2:56pm

वाह वाह आदरणीय सुरेंद्र जी,, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने,, सभी अशआर पसंद आए, गिरह भी बढ़ी मजेदार लगी है
दूसरे शियर में "अगर" और "जो" दोनों शब्द एक साथ शायद कुछ अजीब लग रहे हैं

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