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गजल(अक्ल के मारे हुए हैं..)

2122 2122
अक्ल के मारे हुए हैं
हम सभी हारे हुए हैं।1

आज मसले बेवजह के
देखिये नारे हुए हैं।2

जो नहीं थोड़ा सुहाये,
आँख के तारे हुए हैं।3

लूटते हैं जिस्म-ईमां
जान हम वारे हुए हैं।4

दान कर दीं कश्तियाँ भी
आज बेचारे हुए हैं।5

कान देते, बात बनती
वे उबल पारे हुए हैं।6

बाग भर मैं देख आया,
तिक्त फल सारे हुए हैं।7

सब लिये हैं गीत अपने
भाव को टारे हुए हैं।8

हंस ढूँढ़े, मिल गये क्या?
मौन मन मारे हुए हैं।9
@'मौलिक व अप्रकाशित'

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Comment by Mohammed Arif on June 3, 2017 at 8:23am
आदरणीय मनन कुमार जी आदाब, छोटी बह्र की प्यारी ग़ज़ल । बधाई स्वीकार करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 3, 2017 at 7:01am

अक्ल के मारे हुए हैं
हम सभी हारे हुए हैं।1

आज मसले बेवजह के
देखिये नारे हुए हैं।2

जो नहीं थोड़ा सुहाये,
आँख के तारे हुए हैं।3

बहुत खूब आदरणीय मनन कुमार जी | बधाई स्वीकारें|

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 3, 2017 at 7:01am

अक्ल के मारे हुए हैं
हम सभी हारे हुए हैं।1

आज मसले बेवजह के
देखिये नारे हुए हैं।2

जो नहीं थोड़ा सुहाये,
आँख के तारे हुए हैं।3

बहुत खूब आदरणीय मनन कुमार जी | बधाई स्वीकारें|

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