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ग़ज़ल ---झुकी झुकी सी नज़र में देखा

-----**** ग़ज़ल ***------

121 22 121 22 121 22 121 22

झुकी झुकी सी नज़र में देखा ,
कोई फ़साना लिखा हुआ है ।।
ये सुर्ख चेहरा बता रहा है
के दिल का मौसम जुदा जुदा है ।।

------------------------------------------------

फ़िजा की सूरत बदल रही है ,
अजीब मंजर है आशिकी का ।।
हैं मुन्तजिर ये सियाह रातें ,
वो चांद कितना ख़फ़ा खफ़ा है ।।

-----------------------------------------------

तमाम शिकवे गिले हुए हैं ,
तमाम बातें बयाँ हुई हैं ।
जो फासले बन गए कभी थे ,
वो रफ्ता रफ्ता बढ़ा रहा है ।।
--------------------------------------------------

है आँधियों का अजब तमाशा
सुकूँ के लम्हों ने साथ छोड़ा ।
ये तीरगी का अजीब आलम,
चिराग घर का बुझा बुझा है ।।

----------------------------------------------------

जरूर कुछ तो मलाल होगा ,
हमारी चाहत के हौसलों से ।
ऐ हुस्न वाले है फिक्र मुझको
गुनाह क्या जो कटा कटा है ।।

------------------------------------------------

जो आग दिल में लगा गए थे ,
वो आग अब तक बुझी नहीं है ।
सुलग रही है ये दिल की बस्ती ,
दयार में अब धुंआ धुंआ है ।।

--------------------------------------------------

यहाँ रकीबों की महफिलों में ,
तेरी अदाएं मचल रही हैं ।
तेरे उसूलों की सरजमीं पर ,
वफ़ा का झंडा झुका झुका है ।।

----------------------------------------------------

नकाब इतना उठा के मत चल
हैं रिंद मुद्दत से तिश्नगी में ।
ये जाम छलका न आंख से अब
ये मैकदा क्यूँ खुला खुला है ।।

-----------------------------------------------

न नींद आई न चैन आया ,
न होश में तुम मिले अभी तक ।
ये तेरा लहजा बता रहा है
ये इश्क तेरा नया नया है ।।

--------------------------------------------------

कोई तो रहबर है तेरे दिल का ,
किसी की नजरें हुई हैं कातिल ।
जो नूर करता था बज्म रोशन ,
वो नूर कैसा लुटा लुटा है ।।

---------------------------------------------------

ओ जाने वाले जरा ठहर जा
इधर भी अपनी निगाह कर दे ।
जो जख्म मुझको मिले थे तुझसे
वो जख्म अब तक हरा हरा है ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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Comment by Naveen Mani Tripathi on June 27, 2017 at 4:52pm
आ0 समर कबीर साहब की प्रतीक्षा में है यह ग़ज़ल
Comment by Naveen Mani Tripathi on June 27, 2017 at 4:51pm
भाई ब्रजेश कुमार ब्रज जी सादर आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on June 27, 2017 at 4:50pm
सादर आभार आ0सुरेंद्र इंसान साहब ।
Comment by surender insan on June 27, 2017 at 3:20pm
वाह जी वाह बहुत बढ़िया ग़ज़ल जी। दिली मुबारकबाद कबूल करे जी।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 27, 2017 at 11:41am
वाह वाह खयबसुरत ग़ज़ल
Comment by Naveen Mani Tripathi on June 25, 2017 at 9:31pm
आ0 मित्र श्री जयनित मेहता जी सादर आभार ।
Comment by जयनित कुमार मेहता on June 25, 2017 at 3:41pm
बहुत खूब, बहुत सुंदर आदरणीय।।
Comment by Naveen Mani Tripathi on June 23, 2017 at 10:29pm
आ0 राम अवध विश्वकर्मा जी सादर आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on June 23, 2017 at 10:28pm
आदर्णीय सुशील सरन जी सादर आभार ।

जो ज़ख्म मुझको मिला था तुझसे ।
वो जख़्म अब तक हरा हरा है ।।
कृपया इस तरह पढ़े। पोस्ट आडिट कर दूंगा ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on June 23, 2017 at 10:25pm
आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी सादर आभार ।

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