मैं पहुंचा ही था कि मुझे अपने घर से दो अजनबी लड़के निकलते हुए दिखाई दिए. इससे पहले कि मैं उनकी बाबत कुछ जान पाता. वे बाईक पर बैठकर रफ्फूचक्कर हो गये.
दरवाजे पर बेटा खडा था. मैंने उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा तो उसने बताया कि डोमेस्टिक गैस सर्विस’ से आये थे .यह वही गैस सर्विस थी जहां से मेरे घर एल पी जी सिलिंडर आता है.
‘क्यूँ आये थे ?’- मैंने यूँ ही पूंछ लिया.
‘अपना गैस स्टोव चेक करने आये थे ?’
‘ स्टोव-------मगर क्यों ?’ मैं हैरत में पड़ गया –‘ जब चूल्हा बिगड़ता है, तो लाख बुलाने पर कोई नहीं आता. मजबूरन हमे ही चूल्हा लेकर दौड़ना पड़ता है. फिर ये हातिमताई कैसे आये ? और तुमने उन्हें घर में घुसने क्यों दिया ?’
‘क्या करते कम्पनी का लेटर आया था ?’
‘ओह---- तो यह कोई बड़ा गेम है’- मेरे होंठ गोल हो गए- ‘क्या चेक किया, अपना चूल्हा तो सही था ?’
‘हाँ चूल्हा सही था . उन्होंने इधर-उधर ठुक-ठुक किया. बस’
‘ताज्जुब है ?’- मेरे मुख से निकला –‘कम्पनी की यह दरियादिली ?’
‘दरियादिली नहीं ‘- बेटे ने टोककर कहा-‘ इतनी सी बात के दो सौ रुपये ले गए ‘
‘तो यह बात थी’ - मामला कुछ-कुछ मेरी समझ में आया- बेटे पर थोड़ा गुस्सा भी आया - ‘पर तुमने पैसे दे क्यों दिए ?’
’क्या करता ---?’ – बेटे ने परास्त स्वर में कहा- ‘ वे धमकी दे रहे थे की अगर वे ऐडवर्स रिपोर्ट कर देंगे तो सिलिंडर मिलना बंद हो जायेगा ‘
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
समाज की दशा और दिशा की ओर संकेत करती इस अच्छी लघुअ कथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय गोपाल नारायन जी।
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