For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कहो बिरजू कैसे आये ? वह भी सवेरे-सवेरे’

 बिरजू रैदास हमारे यहाँ हलवाही का कार्य करते थे. खेती के नए उपकरण आ जाने और उम बढ़ जाने से उन्होंने अब यह कार्य छोड़ दिया था.

‘मलकिन, बिटिया की शादी तय कर दी है. अब आप से कुछ मदद होइ जाय ?’

‘अच्छा तो दिविया इतनी बड़ी हो गयी , जरूर-जरूर हमारी भी तो बेटी ही है’ –मैंने सकुचाते हुए उसे तीस ह्जार का चेक दिया.

‘जुग-जुग जियो मलकिन. बिटिया तरक्की करे‘ -वह आशीर्वाद देकर चला गया . तभी मुझे याद आया- आज बेटी की फीस भी भरनी है . यानि कि मुझे एटीएम जाकर पैसा निकालना होगा . मैंने घर के जरूरी काम निपटाए और एटीएम की और प्रस्थान किया .

राह में एक दरगाह थी . वह फ़कीर अलमशाह का अड्डा था . फ़कीर कुछ माँगता न था पर हर आने-जाने वाले के सामने अपना कसोरा बढ़ा देता था .  शायद पड़ोस की विधवा समझकर उसने अपना कसोरा कभी मेरे आगे नहीं फैलाया . एटीएम पहुंच कर जब मैंने पैसे निकालने चाहे तो नो बैलेंस का सन्देश आया. मैंने फिर कोशिश की पर वही मैसेज . मैं हैरान . निदान मुझे बैंक जाना पड़ा . वहां पता चला कि मेरे अकाउंट से सारे पैसे निकल चुके हैं . मैं मेनेजर से मिली.  उसने मेंरी कहानी सुनकर कहा –‘मैडम लगता है आपका अकाउंट हैक हो गया है. पर बैंक इसमें आपकी कोई  मदद नही कर सकता .’ 

मेरे पांव के नीचे से जमीन खिसक गयी, अकाउंट में तीस लाख की रकम जमा थी. कोई  राहत या सांत्वना न पाकर मुझे घर लौटने को मजबूर होना पड़ा. उस दिन दरगाह पर फ़कीर ने भी अपना कसोरा मेरे आगे कर दिया. मैंने गुस्से में अपना सारा पर्स वही उलट दिया. मेरे इस अप्रत्याशित तेवर पर फ़कीर हक्का-बक्का रह गया. घर पहुँची तो बेटी स्कूल से असमय वापस आ गयी थी –‘माँ आज क्लास में बैठने नही दिया, सब लडकियां फीस लेकर गयी थी ‘

मेरी आँखों में आंसू आ गए.  इसी समय हताश –निराश बिरजू भी आ गया ,  वह  क्षोभ भरे स्वर में   बोला – ‘मलकिन हम गरीबन से अस मजाक ठीक नाहीं. ‘

बिरजू  चेक मेरे मुंह पर फेंक कर चला गया .

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 759

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on August 15, 2017 at 12:26am

आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,
लघु कथा बहुत मार्मिक है | शीर्षक के साथ न्याय हुआ है | बधाई स्वीकार करें | 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 4, 2017 at 9:07pm

आ० समर कबीर साहिब ------------आपने कहा कथा में कसावट की कमी है .कसावट की कंमी तब होती है जब अनावश्यक विस्तार हो , फालतू के शब्द हों , अनावश्यक प्रसंग हो -----------आप अग्रज है मैं स्वीकार कर लेता हूँ

अकाउंट हैक कैसे हो गया?------- मान्यवर यह मेरी कल्पना नहीं है . यह एक अनैतिक व्यवसाय के रूप में फ़ैल रहा है - कथा तो सावधान करने के लिए ही रची गयी है

.फ़क़ीर विधवा जान कर उसके आगे कासा नहीं बढ़ाता था,फिर उसी समय क्यों बढ़ाया ?------------यह प्रसंग ही तो नियति की  बिडम्बना दर्शाता है  . जिसका सब कुछ लुट गया हो वह क्षोभ  मे ऐसी ही प्रतिक्रिया  करेगा  .  कथाएँ  तो अबूझ प्रश्नों के लिए ही जानी पहचानी जाती है . प्रेमचंद ने जब जब समस्या का समाधान किया आलोचना के शिकार बने रहे . गोदान में उन्होंने केवल समस्या उठायी  समाधान नहीं किया और गोदान सुपर हिट  हो गयी .

आपने कथा को समय दिया  इसका शुक्र गुजार हूँ  . आपकी प्रतिक्रिया से ही विचार साझा करने का मन हुआ वरना तो बस आभार ही प्रदर्शित करते हैं . सादर  .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 4, 2017 at 8:16pm

आ० रवि जी  आपकी जिज्ञासा का समाधान  करना चाहूँगा-

तथ्‍यों की कमजोरी के कारण लघुकथा  बहुत कमजोर बनी है----  आपकी भावनाओं को सलाम

तीस लाख जैसी रकम हैक होना उचित नहीं लग रहा ।- आप हैकिंग व्यवसाय की भयावहता  को नजरंदाज न करे जिसने लाखों लोगों को तबाह किया है . यह रकम तो  फिर भी बहुत  थोड़ी है 

मैंने सकुचाते हुए उसे तीस ह्जार का चेक दिया-------जाहिर है सकुचाते  शब्द मैंने जानबूझकर डाला है . यह चरित्र की अपनी संवेदना है  पाठक इस पर क्या सोचते है वह  उनकी अपनी शख्सियत है   ------उम्र के स्थान पर उम छप जाना टंकण  त्रुटि है  यह भी जाहिर है .-----------------आदरणीय  आप रचना पर आये आपका बहुत-बहुत शुक्रिया .   सस्नेह .

 

Comment by Ravi Prabhakar on July 4, 2017 at 7:41am

आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्‍तव जी लघुकथा कहने का अच्‍छा प्रयास किया है परन्‍तु तथ्‍यों की कमजोरी के कारण लघुकथा  बहुत कमजोर बनी है । तीस लाख जैसी रकम हैक होना उचित नहीं लग रहा । आजकल तो किसी भी ट्रांजैक्‍शन की सूचना मोबाइल पर एसएमएस दव्ारा खाताधारक तक पहुँच जाती है और तीस लाख जैसी मोटी रकम के बारे खाताधारक को कुछ पता न चला हो ये सही नहीं लगता । / अच्छा तो दिविया इतनी बड़ी हो गयी , जरूर-जरूर हमारी भी तो बेटी ही है’ –मैंने सकुचाते हुए उसे तीस ह्जार का चेक दिया/  यहां सकुचाते हुए शब्‍द मेरी समझ में नहीं आया । तीस हजार की मदद देने वाला सकुचा क्‍यों रहा है? / खेती के नए उपकरण आ जाने और उम बढ़ जाने से / यहां उम के स्‍थान पर उम्र शब्‍द होना चाहिए था । फकीर के संदर्भ में मैं आदरणीय समर कबीर जी की टिप्‍पणी से सहमत हूं । वैसे लघुकथा अपने शीर्षक को सार्थक कर रही है । सादर

Comment by नाथ सोनांचली on July 2, 2017 at 2:49pm
आद0 गोपाल नारायण जी सादर अभिवादन। लघुकथा का बेहतरीन प्रयास। बधाई निवेदित हैं।
Comment by Mohammed Arif on July 2, 2017 at 7:53am
आदरणीय गोपाल नारायण जी आदाब, अच्छा प्रयास रहा । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by रक्षिता सिंह on July 1, 2017 at 9:35pm
nice story.
Comment by Samar kabeer on July 1, 2017 at 8:24pm
जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,कथानक अच्छा है लेकिन कसावट की कमी साफ़ नज़र आ रही है,अकाउंट हैक कैसे हो गया?फ़क़ीर विधवा जान कर उसके आगे कासा नहीं बढ़ाता था,फिर उसी समय क्यों बढ़ाया ?फिर ग़ुस्से में उसने अपना पर्स ख़ाली कर दिया,तएं भी नफसियाती नुक्तए नज़र से देखें तो सही नहीं लगता,ऐसे। बहुत से सवाल इस कथा में अनबूझे से हैं ।
बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
4 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
8 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service