For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते...तत्र..!' (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

परिपक्व कहे जाने वाले या माने जाने वाले लोकतंत्र की हथेली पर बैठी बेहाल नारी पांचों उंगलियों पर दया दृष्टि डाल रही थी। किसी में उसे परेशान जनता नज़र आ रही थी, तो किसी में मीडिया। बाकी उंगलियों में उसे लोकतंत्र की स्तंभ​ कही जाने वाली विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका नज़र आ रही थी, परेशान और भौचक्की सी।

"हे भारतीय नारी, क्षमा प्रार्थी हूं। समानता, सबलता, सशक्तिकरण करने के तमाम प्रयासों के बावजूद हम तेरी आबरू नहीं बचा पा रहे!" सभी की उदास, रोती सी शक्लें यही बयां कर रहीं थीं।

नारी ने बारी-बारी से सबकी शर्मिन्दगी को अपनी आंखों से नापा। एक लम्बी सी आह के साथ वह बोल पड़ी- "जिस देश में मुझे महान कहा जाता है, पूजा जाता है, वहां ही ऐसा है, तो कोई तो कसूर मेरा भी है!"

"नहीं, नहीं, तुम्हारा नहीं! सारा कसूर मेरा है !" मध्यमा में उपस्थित मीडिया ने कहा।

"नहीं, तुम नहीं, हम ज़िम्मेदार हैं तुम्हारी दिशा और दशा के लिए!" बायीं तरफ़ की उंगली पर उपस्थित जनता ने मीडिया से कहा।"

लोकतंत्र के तीनों स्तंभ रूपी शेष उंगलियां अंगूठे सहित कभी जनता की और देखने लगीं, तो कभी मीडिया की ओर।

"नहीं, नहीं, तुम लोगों का कोई कसूर नहीं, हम ही कहीं न कहीं ग़लती पर हैं!" तीनों ने एक स्वर में कहा।

नारी पुनः उन बेबस पांचों को बारी-बारी से घूरने लगी।

"शायद तुम में से कोई दोषी नहीं! मैंने ही अपनी लक्ष्मण रेखा लांघी है प्रकृति और धर्म की बनाई हुई!"

लोकतंत्र की हथेली पर अब वे पांचों स्तंभ भी अपनी-अपनी लक्ष्मण रेखा देख रहे थे।


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 627

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 29, 2017 at 6:12am
मेरी यह कटाक्षपूर्ण प्रस्तुति आपको पसंद आई, प्रयास सफल हुआ। तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय indravidyavachaspatitiwari जी, डॉ. आशुतोष मिश्रा जी, मोहम्मद आरिफ़ जी व आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 27, 2017 at 11:51am
बहुत ही उत्तम ममस्पर्शि भावों का समावेश किया है इस लघुकथा में आदरणीय..सादर
Comment by Nita Kasar on June 26, 2017 at 3:48pm
प्रतीकात्मक रूप से लिखी गई कथा के लिये व नायिका के दृष्टिकोण को उजागर करती कथा के लिये बधाई आद० शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 26, 2017 at 3:19pm
जबरदस्त अंदाज में लिखी यह लघु कथा बेहद पसंद आयी आदरणीय शेख जी ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by Mohammed Arif on June 25, 2017 at 6:44pm
आदरणीय शेख शहज़ाद ऊस्मानी जी आदाब, लघुकथा के बहाने अच्छा कटाक्ष । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by indravidyavachaspatitiwari on June 25, 2017 at 6:24am

आ0 शेख शहजाद उसमानी आपके इस लघुकथा ने नारी की दुुर्दशा के दोषी को संुदर ढंग से रखा है। आपको हार्दिक बधाई।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 24, 2017 at 2:18pm
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देकर हौसला अफ़ज़ाई के लिए सादर हार्दिक आभार आदरणीय Shyam Narain Verma जी।
Comment by Shyam Narain Verma on June 24, 2017 at 10:58am
इस अच्छी लघु कथा के लिए बधाई, आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
1 hour ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service