For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिम झिम रिम झिम बारिश होने लगती है

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़

यारों में जब रंजिश होने लगती है
चुपके चुपके साज़िश होने लगती है

आँखों में जब सोज़िश होने लगती है
रिम झिम रिम झिम बारिश होने लगती है

बाबू जी का साया सर से उठते ही
धरती की पैमाइश होने लगती है

तुम जब मेरे साथ नहीं होते जानाँ
मुझ पर ग़म की यूरिश होने लगती है

मुझसे कोई काम अटक जाता है जब
उनको मेरी काविश होने लगती है

जब जब भी मैं नाम तुम्हारा लिखता हूँ
हाथों में क्यूँ लरज़िश होने लगती है

बच्चे ग़ुरबत को क्या समझें उनकी तो
रोज़ नई फ़रमाइश होने लगती है

मुझसे कोई भूल "समर" हो जाये तो
महशर जैसी पुरसिश होने लगती है

---

रंजिश :- दुश्मनी
साज़िश :- षडयंत्र
सोज़िश :- जलन
पैमाइश :- माप (नपती)
यूरिश :- हमला
काविश :- तलाश
लरज़िश :- कम्पन्न
ग़ुरबत :- ग़रीबी
महशर :- महाप्रलय के बाद ईश्वर जिस मैदान में हर इंसान से उसके कर्मों का हिसाब लेगा ।
पुरसिश :- पूछताछ (जवाब तलबी)
___

समर कबीर
मौलिक/ अप्रकाशित

Views: 1478

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on March 12, 2019 at 7:30am

जनाब अनीस शैख़ साहिब आदाब,ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ,ग़ज़ल में शिर्कत और दाद-ओ-तहसीन के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

Comment by Md. Anis arman on March 11, 2019 at 3:21pm


जब जब भी मैं नाम तुम्हारा लिखता हूँ
हाथों में क्यूँ लरज़िश होने लगती है

वाह्ह्ह्ह बेहतरीन सर क्या ग़ज़ल है क्या लय है हर शेर स्कूल कि एक एक कक्षा  कि तरह है जिसमें कुछ नया सीखते हैं ,गूँगा भी गुनगुनाने लग जाये इस ग़ज़ल में क्या कवाफ़ी है समंदर से मोती चुन के लाये हैं  आप और उसे गूथकर इस पटल पर मुझ जैसे नौसिखिए के लिए सजा कर रख दिए हैं आने वाले दिनों में न  जाने कितने लोग इस ग़ज़ल में डूबकर इसका मज़ा लेंगे और सीखेंगे, बहुत  बहुत मुबारकबाद सर 

Comment by Samar kabeer on September 17, 2017 at 9:40pm
जनाब अफ़रोज़'सहर'साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Afroz 'sahr' on September 17, 2017 at 9:26pm
वाह वाहहहहह जनाब समर साहब बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाई
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 17, 2017 at 9:23pm

सादर धन्यवाद आदरणीय भाई जी | मुझे लग तो रही थे २२ २२ २२ २२ २२ २ है , पर कंफ्यूज हो रही थी | पुनः धन्यवाद आपका भाई जी |

Comment by Samar kabeer on September 17, 2017 at 9:18pm
बहना कल्पना भट्ट जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
क्षमा मांगने की क्या बात है ।फेलुन यानी 22मेरी ग़ज़ल की गिन्ती है 22 22 22 22 22 2
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 17, 2017 at 9:13pm

आँखों में जब सोज़िश होने लगती है
रिम झिम रिम झिम बारिश होने लगती है

बाबू जी का साया सर से उठते ही
धरती की पैमाइश होने लगती है बहुत खूब भाई जी | जी भाई जी क्षमा चाहूंगी |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 17, 2017 at 9:11pm

आदरणीय भाई जी फ़ेलुन की गिनती क्या २२ होती है ? यह जो ग़ज़ल आपने लिखी है उसकी गिनती क्या २२१ है ?

Comment by Samar kabeer on September 17, 2017 at 8:55pm
बहना कल्पना भट्ट जी आदाब,बहुत बहुत शुक्रिया आपका,लेकिन आपने जो अशआर पसन्द किये हैं वो इस ग़ज़ल के नहीं,मेरी दूसरी ग़ज़ल के हैं ।
Comment by Samar kabeer on August 5, 2017 at 5:07pm
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,आपकी प्रतिक्रया पाकर मुग्ध हूँ,ये मेरे लिये बहुत बड़ा सम्मान है कि आपने मेरी इस ग़ज़ल को अपने ख़ूबसूरत अल्फ़ाज़ से नवाजा और इस पर दोबारा तशरीफ़ लाये और मेरी ग़ज़ल का मान बढ़ाया,इस स्नेह के लिए दिल की तमाम तर गहराइयों के साथ शुक्रगुज़ार हूँ आपका ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
10 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
15 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service