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*2122 1122 1122 22*
इस तरह अम्न को बर्बाद करेगी दुनिया ।
फिर नए जुर्म की तादाद करेगी दुनिया ।।

छीन लेती है निवाले भी मेरे बच्चों से ।
कब तलक कर्ज से आज़ाद करेगी दुनियां ।।

जब भी मकसद का शजर बनके नज़र आऊंगा।
मेरी ताक़ीद पे फरियाद करेगी दुनिया ।।

रोज उठता है धुंआ एक कहानी लेकर ।
क्या बताऊँ की किसे याद करेगी दुनिया ।।

है सराफ़त से तेरी बज्म में जीना मुश्किल ।
साफ दामन पे बहुत शाद करेगी दुनिया ।।

कत्ल करने का सलीका भी अजब है यारों ।
हर सही बात पे अपवाद करेगी दुनिया ।।

मुफ़लिसी देख के अपने भी मुकर जाते हैं ।
कौन कहता है कि इमदाद करेगी दुनिया ।।

जख्म देकर के वो मरहम की खबर रखती है ।
लूटकर घर मेरा आबाद करेगी दुनिया ।।

नव निहालों की हथेली में है बारूद बहुत ।
अब तो मासूम को जल्लाद करेगी दुनिया ।।

रोज ऐटम की नयी खेप बना देती है ।
मौत कैसी हो ये ईज़ाद करेगी दुनिया ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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Comment by Samar kabeer on July 10, 2017 at 2:58pm
मेरे कहे को मान देने के लिये धन्यवाद,ख़ुश रहो ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on July 10, 2017 at 2:53pm
आ0 कबीर सर सादर नमन । इस्लाह और आलोचना के लिए ही ग़ज़ल को पोस्ट करता हूँ । आपकी सलाह से सुधार करके अपने व्यक्तिगत ब्लॉग तीखी कलम से डाट काम में पोस्ट करता हूँ । आगे से ओबीओ के ब्लॉग में भी अपडेट करूँगा । अन्य की पोस्ट पर व्यस्तता की वजह से नही आ पाता था लेकिन अब पूरा प्रयास रहेगा । तरही मुशायरा में भी आऊंगा । सादर नमन सर ।शुभ शुभ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 10, 2017 at 2:52pm

आदरणीय नवीन भाई , मै भी आदरणीय समर भाई जी की बातों का मुखर समर्थन करता हूँ .. और उनकी भावनाओं के क़द्र भी । विचारों और भावानाओं की स्वतंत्रता  का मान रखते हुए जो सलाहें दी जाती हैं, इल्म ओ अरूज या कहन के विषयों पर अगर आपको स्वीकार हों तो मंच पर सुधार भी ज़रूरी है , या आप सिरे से इनकार कर कर दीजिये .. ये हक़ भी है आपको ।
गज़ल पर आ. समर भाई जी की बेहतरीन इस्लाह के बाद और कहने को रह नही जाता ।

गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Samar kabeer on July 10, 2017 at 12:34pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
आपके बारे में मैंने जितना समझा है वो ये है कि आप अपनी ग़ज़ल पर सिर्फ़ तारीफ़ चाहते हैं,आलोचना आपको पसंद नहीं,ये बात मैं अपने मुशाहदे से कह रहा हूँ,देखने में ये आया है कि मैंने आज तक आपकी जितनी ग़ज़लों की इस्लाह की है उसे आपने यहाँ तस्लीम तो किया है लेकिन उनमें सुधार नहीं किया,वो आज भी आपके ब्लॉग पर वैसी ही मौजूद हैं,हाल ही में आपकी पिछली ग़ज़ल पर मैंने जो त्रुटियां बताई थीं उन्हें आपने यहाँ तस्लीम तो किया लेकिन उसमें सुधार किये बिना ही वो ग़ज़ल आपने दूसरे मंच पर पोस्ट कर दी,फिर बताइये मेरी बात की आपने क्या इज़्ज़त रखी ?
दूसरी बात,आप पटल पर आई दूसरी रचनाओं पर अपनी प्रतिक्रया कम ही देते हैं,और आपको कभी ओबीओ के तरही मुशायरे में जो सीखने का बहतरीन मौक़ा होता है,कभी नहीं देखा गया ।
मेरी मजबूरी ये है कि मुझे अपने मंच की भलाई के लिए हर रचना पर अपनी प्रतिक्रया देना होती है,चाहे रचनाकार उसका लाभ ले या न ले,लेकिन मैं वहाँ इसलिये लिखता हूँ कि हमारे मंच के दूसरे सदस्य तो उससे सीख लेते हैं ।
अब आइये आपकी ग़ज़ल की तरफ़, मतले के सानी मिसरे में क़ाफ़िया 'तादाद'काम नहीं कर रहा है,यहाँ "ईजाद" क़ाफ़िया रखें तो मतला मज़बूत हो जायेगा ।

'जब भी मकसद का शजर बनके नज़र आऊंगा
मेरी ताक़ीद पे फ़रयाद करेगी दुनिया'
दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,मफ़हूम स्पष्ट नहीं हो रहा है,दूसरी बात 'ताक़ीद' नहीं "ताकीद"सही है,और इसका अर्थ है,इसरार,ज़िद,वग़ैरा ।
4थे शैर में भी मफ़हूम साफ़ नहीं,और रदीफ़ क़ाफिये में ताल मेल भी नहीं है ।
5वें शैर में भी मफ़हूम साफ़ नहीं है,और क़ाफ़िया भी काम का नहीं ।
छटे शैर में भी मफ़हूम साफ़ नहीं,और क़ाफ़िया भी काम नहीं दे रहा है ।
आठवें शैर भी मफ़हूम से ख़ाली और दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।
बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by Shyam Narain Verma on July 10, 2017 at 12:26pm
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 
Comment by Naveen Mani Tripathi on July 9, 2017 at 8:42pm
आ0 लक्ष्मण धामी जी सादर आभार
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 9, 2017 at 6:28pm
आ. भाई नवीन जी बहुत अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।
Comment by Naveen Mani Tripathi on July 9, 2017 at 2:29pm
आ0 रवि शुक्ल जी सादर आभार । मै भी उस्ताद की प्रतीक्षा कर रहा हूँ ।
Comment by Ravi Shukla on July 9, 2017 at 2:15pm
आदरणीय नवीन जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल करें कुछ अशआर पर काफिये की निस्बत रदीफ़ के साथ हमें कम नजर आई। जैसे मतले में तादाद का काफिया है छटे शेर में अपवाद काफिया इन पर उस्ताद की इस्लाह आने की हमें भी प्रतीक्षा रहेगी इस गजल के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई। सादर

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